नेपोलियन बोनार्पाट | Nepoliyan Bonarpat

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Nepoliyan Bonarpat by राधामोहन गोकुलजी - Radhamohan Gokual Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) ही पड़ती दे। जब घध्माध्म का विचार खड्ग पर . छोड़ दिया जाता है, तो सबल निद्य ही विजयी होता हे । जब कासिका की स्वतंत्र राज-श्री ख्रष्ट हुई, वीर. लोग भाग भाग कर इधर उघर गिरिकंद्राओं में छिपने लगे, चात्से को भी स्थान परित्याग करके भागना पड़ा । घोड़े पर सवार दुगम जंगल पहाड़ों को तय करके प्रचंड शत्रुओं की दृष्टि से बचना खेल नहीं है, परंतु अन्य उपाय न था । पतिप्रेमानुरक्ता पत्नी को भी पति का ही 'झनुकरण करना था । पाठक समझ सकते हैं कि सिवा वीरांग- नाओं के ऐसा साहस सामान्य भीखू स्त्री कदाचित नहीं कर सकती थी । अंततः: कासिका का फ्तन होने के उपरांत १८२६ विक्रेमीय (१५ अगस्त १७६८ ) में प्रसवकाल समीप होने पर अजेक्सिया- वाले घर में दांपत्य-प्रेम-परिपूण जोड़े ने आश्रय लिया । कौन जानता था कि इस दुदेशा में जब कि देश की स्वतंत्रता नाश दो चुकी थी, घर छोड़ कर लोग भागे भागे फिरते थें, 'कांसिका की स्वणम्यी भूमि भयंकर बन सी दिखाई देती थी, आज वीर ललना लेटीशिया श्र देशभक्त योद्धा चारस के घर जगतूविजयीं नेपोलियन जन्म घारण कर रहा है । कोन जानता था कि यह नव- ._ प्रसूंत बच्चा वह नेपोलियन होगा, जिसकी हांक से घरती दिल जायगी, दिग्गज डोल जायंगे, जिसकी तलवार की चमक देखकर पाश्चाय मुकुटघारियों के मुकुट सहसा भूमि चूमने लगेंगे। जो कहीं दमारा चरित्रनायक 'आज से दो ही मास पहले जन्मा दोदा तो जिन लोगों ने उसे फरासीसी लिखा है, भूल सें भी बे ऐसा न.




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