ईश्वर का अवतार लेना और प्रायश्चित करना | Ishvar Ka Avatar Lena Or Prayashchit Karana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.68 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईश्वर का भ्रवतार या तो नित छुआ करता है या तो कभी नहीं १९
बरन उन की सन्तान है, कभी यह नह्दीं पूछेंगे कि ईश्वर संसार और
तच्वों से सम्बन्ध रखते हैं या नहीं; वे अवश्य इस बात को दिल
और जान से स्वीकार करेंगे। पर क्या सचमुच किसी के मन से यह
सन्देह उत्पन्न हो सकता है कि ईश्वर श्रौर मजुष्यों के बीच सम्बन्ध
है था नट्दी १ यदि वास्तव मे किसी प्रकार का सम्बन्ध न हुआ हो
तो मैं सममता हूँ कि यह प्रश्न कभी हमारे सन में न उत्पन्न हुआ
टह्वोता कि ईश्वर हैं या नद्दी । यदि सचमुच है तो सम्बन्ध भी है कयों-
कि जब तक कि किसी प्रकार का सम्बन्घ न होता तो इमारे ख़ियान
में भी ईश्वर नट्दी आ सकते ।
कभी लोग बतनातें कि दर एक प्रकार से ईश्वर मे श्र सशुष्य
मे मिन्नता है अथीत् जा गुण ईश्वर मे है सो मज्लुष्य मे नह्दीं पाये
जाते है श्रौर जो जो गुण मजुष्य मे हैं सो ईश्वर में नही है। बार २
लोग ससीद्दियों पर यह दोष नगाते कि तुम-भ्रहंकार में फसकर
और शभ्रपने तई उत्तमोत्तस समककर ईश्वर को भी एक सलुष्य
समभतते हो और ऐसा करते हुए ईश्वर की निन्दा करते हो । पर ऐसा
कथन ठीक नही है दम ईश्वर को एक मनुष्य नट्ी समभते हैं तो
भी हम यट्द तो कहते है कि ईश्वर मे श्रौर हम लोगों में अवश्य कुछ
न कु समानता है, नही तो हम कैसे उनको जानें और केसे उनकी
आराधना करे, कैसे उन पर भरोसा रखें । यदि परमेश्वर हम से यहां
तक न्योरे श्रौर भिन्न हों कि किसी प्रकार का सम्बन्ध हम से
नहदी रखते हैं तो वे हमारे लिये बचन सात्र के ईश्वर हैं ।
पर इस समस्त बखेडे का क्या फन है, हम जानते ही तो हैं कि
ईश्वर हम से सम्बन्ध रखते है और इस कारण नित यद् बातें पूछते
हैं कि ईश्वर हमे कया आज्ञा देते हैं उन के साथ हम को कैसा बताँव
करना चाहिये ।
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