आनंद प्रवचन भाग - २ | Aanand Parvachan Part-2

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Aanand Parvachan Part-2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोवन को परत रु धुतडुर-जीवन, झौर वानर-जीदन, इन वार विभागों में विभक्त होकर अज्ञानी गतुप्य अपना जीवन समाप्त बर देता है । एवं साधना निष्ठ गधि ने इसी प्रश्त वो उठाया है यह दुनिया है, यहाँ जीवन श्विताना फिसहों दाता है! हजारों जस्म लेते हैं थनाना किसको आता है ? कमाने के लिए सारे सूद हो दौड़ करते हैं । सुम्हो षहुदो सही, घन बा कमाना किमहों आता है है लगाते हूं मघुर प्रीति, झणिक दो सार रोजों को । मगर सच्ची मुंहग्यत का सगाता श्सिकों आता हैं ? इसीलिए सेंटमेस्यु ने लिया है--जीवन का द्वार तो सीधा है, पर मार्ग शंकीर्ण है ।”' जीवन, एक यात्रा पायंप की आवश्यकता मनुष्य का जीवन या है ? इस सम्बन्ध में एक पाश्चात्प विचारक ने बहा है-- *नु जाट डि 8 |एपाएट४, ए01 व फिट ' द (000, 101 ६ ८1१४ ए फितिएतिन प०0ए, 00 पे टा]%6७15 धात ए९550टुड १८ शिच्त 8 901 ॥ पट. ता 5 एाा पट 10उँनेपट ए पट, फटाट 9६ घाय४ एट टॉएप८४ छा दाए0106ी01, शा कद हाफ ११11१ पटु7 50010. [16६55 00 (0 ॥८ हाएएं *जीवन एक यात्रा है. यह कोई घर नहीं, सध्क नहों, और ने हो बसने के लिए नगर है । आर इस जीदन यात्रा थे जो आमोद-प्रमोद और देन हम पाते हैं, वे तो जोवन थी छोटी-छोटी पथिस्शालाएं है. जो सइक की चाजू में पदतो हैं, जहाँ हम शा भर शुस्ता कर ताजगी सेव हैं, त'कि सलरोताजा होडर हम फिर से नई झत्ति शौर स्पूरति के साथ अपने अन्तिम लय को ओर झागें बड़ सके ।'' वितना सुन्दर जिचार है, जीदत बा समझने वे लिए । परन्तु हमारी जोवन- थादा शापी सम्दी है, उसे शय करने दे. लिए पायेय शी आदवश्यवत्ता रहती है ४ दिना पायेप के यात्रा बरतने घाला पथिक रास्तों में भूसनप्यास में धदरा जाता है, वेसे ही जीवन याजी भी रास्ते से सुद्िचारों और मुसस्दासं दा पाधय सेकर ने धते तो उसमें परेशानी उठानी पथ सबनी है, यह भटर भी सदता है, हूधरन-उधर । उत्तरा- ध्ययन गूत्र भी इस बात बा रासी है बदाथ जो महंत मु अपाहेओ पदश्जई । गर्ठतो सो डुहो हो छुहानण्हाए पोडिओो ॥ रे १६ ॥ जो साधनापथिय जीवन बी इस सम्दी यात्रा से बहुत सम्बे सहान्‌ मांगे पर बिना पायिय दे चलता है, वह रास्ते में हो भूजनप्यास गे पीड़ित होइर दुपी हो जाना है ।




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