गुप्ता निभांडवली भाग - १ | Gupta Nibandhavali Bhag-i

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Gupta Nibandhavali Bhag-i by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही गुप्तनिवन्धावली चरितनचचां सम आजार्येगी। जिस सुणम वह क्तिनीद्दी वार हरिश्वन्दरे वरायर हो जाते थे; वद्द उनकी कवित्वशक्ति और सुन्दर भाषा ठिसनेगी शेंटी था । हिन्दी गद्य और पद्यके ठिसनेमे हरिख्न्द्र जेंसे तेज; तीसे और चेधड़क ये, प्रतापनारायण भी वैसेही थे । दूसरे ठोग बहुत सोच-सोच कर और यडी चेट्टासे जो खबियाँ अपने गद्य और पद्यमे पैढा करते थ; चह प्रतापनारायण मिश्रकों सामने पड़ी मिट जाती थीं। टस लेसये लेखक्का और उनका कोई डेट साठ तक साथ रहा द।. रहना; सहना; उठना; बैंठना, लियना, पढ़ना; सब एक साथ होता था ।. इससे उनके स्वभाव और व्यवहारकी एक-एक वात मुूर्तिमान सम्सुस त्याई देती है। वह बात करते करते कविता करते थे, चठते-चछते गीत बना डालते थे। सीधी-सीधी वातोमे दिल्लगी पेदाकर देते थे । तचसे कितने- ही विद्वानों) पण्डिता, कवियोसे मेठ-जोठ हुआ है, बाते हुई है और 'कि्तिनोद्दीमि उनहा-सा एक आध शुण भी देखनेमे आया है। पर उतने शुणोसे युक्त, और हिन्दी साहिय-सेवी देखनेमे न आया । इस रेसक्पर मिश्रजीकी वड़ी कृपा थी और यह भी उनपर चहुत भक्ति रखता था। इससे आज ग्यारह वर्ष तक इनके विपयमे छुछ न लिखा जाना वहुंतोके जीमे यदद विचार उत्पन्न करेगा कि इतने दिन तक इनकी जीयनी क्यों न लिसी गई ? इसका कारण यदद है कि प्रतापकी जीवनी ल्सनेके एक और सब्नन वड हकदार थे। . बह स्वर्गीय पाण्डे अमुदयाल थे, जो प्रतापजीके प्रिय शिप्य और इस लेसकके साथी थे! जव-जब रिसनेका इरादा किया गया; पाण्टेजीने यही कहा कि अपने रुरुकी जीवनी हम आप लिंसेंगे। स्वर्गीय महदाराजकुमार पात्र रामदीनसिंदजी भी पण्डित प्रतापनारायणजी पर चड़ी भक्ति रखते थे। उन्दोंने जीवनी ल्यिनेगा सब सामान पाण्डेजीको सोप दिया था। हु सकी बात दै कि पण्डेची उनकी जोवनी न छिसते पाये और [रत




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