पार्श्वनाथ पूजन संग्रह | Parshvanath Poojan Sangrah

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Parshvanath Poojan Sangrah  by कविवर शशि - Kavivar Shashi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीपाइ्वनाथ जिन पूजा । बख्ताबरसिंह कृत गीताछन्द्‌ वर स्वगंप्राणतकों विहाय, सुमात बामा सुत भये । अश्वसेनक पारस जिनेश्वर, चरन जिनके सुर नये ॥। नव- हाथ उन्नत तन विराजे, उरग लच्छन पद लें । था पं तुम्हे जिन आय तिष्ठी, करम मेरे सब नसें ॥॥ १ ॥। 2 ड्टीं श्री पाशबनाथाजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौघट | 3 हीं श्रीपाश्बनाथजिनेद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठ: ठ: । ३2 हल श्रीपश्बेनाथजिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव । बषट्‌ अथाशक-छन्द नाराच । क्षीरसोमके समान अंबुसार लाइये । हेमफात्र धारि के सु झापकों चढाइये । पाश्वनाथदेव सेव श्रापकी करूँ सदा | दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ।॥ १ ॥। ३ हीं श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्र।य जन्म जरामृत्युविनाशनाय अल नि० चन्दनादि केशरादि स्वच्छ गन्ध लीजिये । आप चने चच मोहताप को हनीजिये । पाश्व॑ ० ॥। 32 हीं श्री पा्वनाथजिनेन्द्राय भवातापबिनाशनाय चंदर्ननिवेपामी ० फेन चन्द के समान अक्षतान लाइकें, चने के समीप सारपंज का रचाइकं ॥ पाश्चनाथदेव ० 1! 3: ही श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्राय अच्तयपदप्राप्ताये अक्षतान्‌ निवेपामी ०




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