थे मनुस्मृति सेकंड चैप्टर ओनली | The Manusmruthi Second Chapter Only
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दवितीयोइध्याय: । ११
गर्भ शुद्ध करनेवाले हवनों ्रौर जातक, मुण्डन तथा यज्ञोपदबीत इन संस्कारोंस
द्विजातियोंके गे और बीजका दोष मिट जाता है ॥ २७ ॥
स्वाध्यायेन त्रतैहमेखेविधेनेज्यया सुतेः ।
महायजैथ यज्ञेश्र ब्राह्मीयं क्रियत तनु ॥ २८ ॥
बेदाध्ययनेन । घ्तेमंघुमांसवजेनादिनियसे: । होमे:साबित्रचरुददोसादिसिः
सार्यंप्रातहोसेश्व । त्रेविद्याख्येन च । घतेष्वप्राधान्यादस्य प्रथगुपन्यासः । इज्यया श्र-
चर्यावस्थायां देवचिपितृतपंणरूपया । यदस्थावस्थायां पुब्नोत्पादनेन । महायशे: पश्च-
ईमिबंहायज्ञा दिसिः । यज्लेज्योतिष्ोमा दिमि: । बाकी ब्रक्षप्राप्तियोग्येय॑ तनु: तन्वव-
च्छिन्न आत्मा क्रियते । कर्मसह कतब्रह्मज्ञानेन सो क्षावासे: ॥ २८ ॥
बेदके पढ़ नेसे, त्रत सि, इवनोंसे, त्रैविद्य नाम ज्रतसे, देव-शऋषि-पितृ-तपंणसे, पुत्रोंति,
मद्दायज् और यज्ञोंसे यह शरीर मोक्ष पानेके योग्य बनाया जा सकता हैं ।। २८ ॥
प्राडनाभिवधेनात्पुंसो जातकमे विधीयते ।
मन्त्रचत्पाशन चास्य हिरण्यमघुसापिषाम् ॥ २8 ॥
नासिच्छेदनात्प्राक् पुरुषर्य जातकमांख्यः संस्कारः क्रियते । तदा चाह्य
सुचगृद्मो ्तमन्त्रे: स्वर्णसघुदता नां प्रादनस् ॥ २९ ॥
पुरुषका जातकमं नाल काटनेसे पहिले करना कद्दा है भौर इस ( बालक ) को मस््त्रो-
चारण पूर्वक सुबणं, शहद भर घीका प्रादयन कराया जाता है ॥ २९ ॥
नामघेयं दचम्यां तु द्वादश्यां वाघ्स्य कारयेत् ।
पुष्य तिथो मुहूर्त वा नक्षत्र वा गुणान्विते ॥ ३० ॥
जातकर्सेंति पूवेश्ठोके जन्मनः प्रस्तुतत्वाजन्सापेक्षयेव दृषमे द्वादशे वा5-
इनि अस्य दिद्योनामधेयं रवयमसम्भवे कारयेत । झथवा--
आदोचे तु व्यतिक्रान्ते नामकर्म विधीयते ।
इति शट्भुवचना इशमे5हन्यतीते एकाददयाइ इति व्याख्येयस् । तन्नाप्यकरणे
प्रशस्ते तिथो प्रद्स्त एव सुहर्ते नक्षत्र च शुणवत्येव ज्यो तिषावगते कतंब्यम् । वादा-
ब्दोब्वधारणे ॥ ३० ॥
बालकका नामकरण जन्मसे दें या बारददवें दिन अथवा पुण्य तिथि या मुहू्तमें या
किसी गुणयुक्त नक्षत्रमें करावे ॥ ३० ॥।
मड्जरयं ब्राह्मणस्य स्पात््त्रियस्य बलान्वितम् ।
वेद्यस्य धनसंयुक्त दाद्रस्य तु जुगुप्सितम्॥ ३१ ॥
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