हिंदी के चालीस बिगङनी और सहायक के सचित्र जिबनचरित्र का संघार | Hindi Ke Chalis Bignani Aur Sahayaka Ke Sachitra Jibancharita Ka Sangraha

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Hindi Ke Chalis Bignani Aur Sahayaka Ke Sachitra Jibancharita Ka Sangraha by मुंशी देवीप्रसाद - Munshi Deviprasadश्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( दर के बाबू दारदाचरण मित्र एम० ए०, बी ० एल ५ | रद शारदाचरण मित्र कलकत्ते के एक प्रसिद्ध जजों झार वकीलों के कुल में १७ दिसंबर सन्‌ १८४८ को उत्पन्न हि कद हुए हैं । झाप कायस्थ हैं शरीर कलकत्ते के एक प्रसिद्ध व्यवसायी के पुत्र हैं । इनकी माता इन्हें छः वर्ष का छोड़ कर स्वर्ग सिधारी थीं । जिस समय ये मिडिल छास में पहुँचे उस समय इनके पिता का भी देहांत हो गया । सन्‌ १८७८ में श्रापने बी० ए० की डिग्री प्राप्त की । एफ़० ए० श्रीर बी० ए० की परीक्षाओं में ये प्रथम हुए थे । बी० ए० की परीक्षा देने के एक महीने पीछे ही श्रापने दूसरी परीक्षा देकर एम० ए८ की डिग्री प्राप्ठ की । श्रापसे पूर्व श्रौर किसी ने इतनी जल्दी जल्दी डिप्रियाँ प्राप्त नहीं की थीं । इसी बीच में झापने कई प्रसिद्ध श्रीर बड़ी बड़ी छात्रवृत्तियाँ भी प्राप्त की थीं। श्राप २१ वर्ष की श्रवस्था में ही कलकत्ता प्रेसिडेंसी कालेज में शभ्रैंगरेज़ी के लेकचरर नियुक्त हुए थे । शिक्षक होकर श्रापने श्रपनी प्रतिभा भार छात्रों पर उत्तम प्रभाव डालने की याग्यता का बहुत अच्छा परिचय दिया था । सन १८७० में बी० एल० परीक्षा पास करके झाप हाई कोर्ट के वकील बन गए । वकालत के साथ ही साथ झाप ““हबड़ा हदिवकारी”” तथा झन्य कई पत्रों का सम्पादन भी करते थे । सम १८७८ से ८० वक श्राप कलकत्ता म्युनिसिपेलिटी के म्युनिसिपल कमिशर भार ८४ से १४०८ तक बंगाल की टेक्स्टबुक कमेटी के मेंबर रहे । सन १८८५ में कलकत्ता विश्वविद्यालय के झ्ाप फेलो हे




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