सर्वोदय तत्त्व दर्शन | Sarvodaya Tattva Darshan 

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Sarvodaya Tattva Darshan  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ अह्दिसा की परम्परा अहिंसा मनुष्य जाति के पूर्वजों की देन है। उसका थ्ाविर्भाव मनुष्य के विकास से भी पहले की वात दै। जानवरों में थी कुट्टम्ब का प्राथमिक रूप मिलता दे थ्रौर उसकी बुनियाद भ्रहिंसा ही है। मानव-इतिहास के प्रारम्भ से झाज तक करीब-करीबर प्रत्येक देश , धर्म और संस्कृति के प्रमुख विचारकों ने श्रद्दिंसा के झाद्श पर ज़ोर दिया है श्र बताया है कि हिंसा और शोषण, शैतानियत श्रौर अन्याय को दूर करने का ठीक रास्ता हिंसा ही है । श्रहिंसा के प्रयोग के दृ्टांत भी प्रत्येक देश के इतिहास में मिलते दें । भारतवर्ष श्रहिंसा की परम्परा इतनी व्यापक श्र श्रट्ूट किसी श्रौर देश में नद्दीं है जितनी हिंदुस्तान में । सच तो यद्द दै कि भ्रहिंसा संसार को भारतवर्ष की सचसे बढी देन है। भारत के सब सदर्वपूर्ण धर्मों की यह शिक्षा है कि झहिंसा सबसे बढ़ा कर्तव्य है । भारतवर्ष के निवासियों का प्राचीन काल से ही जीवन की श्राध्यात्मिक एकता में विश्वास रददा है। सुविख्यात सूत्र 'सो&्दस” श्रौर पतत्वमसि” इसी चिश्वास को प्रकट करते हैं । सब जीवों की एकता की इस धारणा के कारण भारतवर्ष में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि मनुष्य का जानवरों 'और दूसरे जीवुधारियों के साथ बर्ताव भी 'अ्दिसात्मक होना 'वाहिये। चणाश्रम धर्म हिंदुओं के सामाजिक संगठन की '्राघार-शिला वर्णाश्रिम-घर्म दे जिसका जिक्र सबसे पहले ऋग्वेद के पुरुष-सूक्त में श्राता है। चर्णाश्रिम-घर्स का उद्देरय यदद था कि जन-साघारण को अद्दिसा के उच्च रादूर्श की शिक्षा मिले ।” चर्णाश्रिम- धर्म सब मनुष्यों को, शूद्रों को भी ब्राह्मण बनाने का प्रयत्न था । 'झाध्यात्मिक एकात्सकता के अनुभव से उत्पन्न शान्ति और श्ानन्द से पूर्ण घ्राह्मण सनुप्यता के उध्वतम विकास का प्रतीक था श्र उससे इस बात की थ्राशा की जाठी थी कि वद्द बुराई का प्रतिरोध शरीर-शक्ति से नहीं झात्मवल से करेगा । क्षत्रिय में घाह्माण की अपेक्षा श्रास्म-वल की कमी थी श्र इसलिए वह अन्याय के १. अहिंसा श्रीर वर्णाश्रम-धर्स के संवध के लिए, देखिये राधाकृष्णन की 'हार्ट ऑव हिंदुस्तान” श्रौर 'दिंदू व्यू ऑव लाइफ । ०१




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