दिव्य - ज्योति | Divya - Jyoti

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Divya - Jyoti by ऋषिराज महाराज - Rishiraj Maharajकाशीराम चावला - Kashiram Chawala

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ऋषिराज महाराज - Rishiraj Maharaj

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काशीराम चावला - Kashiram Chawala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४. ] पूजनीय श्री ऋषिराज जी महाराज का जीवन चहदती हुई गंगा के तुल्य स्वच्छ और निर्मल था । जिससें जिज्ञासुवर्ग ने अपनी ज्ञान पिपासा को शान्त किया और इस ज्ञान गंगा में गोता लगाकर अपने हृदय के कालुष्य को धो डाला । यह ज्ञान गंगा जिस-जिस प्रदेश में होकर निकली, वदद-वह्द प्रदेश अअर्िसा, सत्य और प्रेम के धन-धान्य से सम्रद्ध वन गया । सत्पुरुषों के जीवन चरित्र से जनता को अरकाश सिलता है; जीवनोपयोगी शिक्षण सिलता है; जीवन संत्राम में जूभने के लिए वल और उत्साह भी सिलता है। जो मनुष्य अपने जीवन को पवित्र, प्रगतिशील तथा वहुजन भोग्य बनाना चाहता है. । उसे चाहिए कि वद्द महापुरुषों के जीवन चरित्रों का गहरी चृष्टि से अध्ययन; मनन और चिन्तन करता हुआ उन सद्दा- हा के गुणों को अपने जीवन में उतारने का अयत्न करता दर समा “जीवन चरित्र महापुरुषों के; हमें शिक्षणा देते हैं । हम भी अपना-अझपना जीवन; स्वच्छ रस्य कर सकते हूँ ।” जो सज्जन इस दिव्य ज्योति का मन लगाकर अध्ययन, मनन तथा चिन्तन करेगे; उनका जीवन अवश्यमेव दिव्य बनेगा । इसमें जरा भी सन्देह नद्दीं है । उपाध्याय अमरमुनि”




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