कुन्द - कुन्द प्राभृत संग्रह | kund Kund Prabhrit Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना क बड़े झादरसे घर ले आया । उसने उन्हें श्रपने मालिकके घरमें एक पवित्र स्थान पर विराजमान कर दिया श्र अति दिन उनकी पएजा करने लगा । कुछ दिनेकि पश्चात्‌ एक मुनि उनके घर पर पधारे । सेठने उन्हें बढ़े भक्तिभावसे आहार दिया । उसी समय उस ग्वालेने व झागस उन मुनिको प्रदान किया । उस दानसे मुनि बढ़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उन दोनोक अशिवाद दिया कि यह ग्वाला सेठके घरमें उसके पुत्र रूपमें जन्म लेगा । तब तक सेठक्े कोई पुत्र नहीं था । मुनिके श्राशिवांदके श्रनुसार उस मग्वालेने सेठके घरमें पुत्र रूपसे जम्म लिया । श्र बड़ा होने पर वह. एक महान मुनि श्और तस्व ज्ञानी हुआ । उसका नाम कुन्दकुन्दाचार्य था । उनके चारेकि साथ पूर्व विदेह जानेकी कथा पूर्ववत्‌ वर्गित है । एक कथा शास्त्र दानके फलके उदाहरण रूपमें बह्मनेमिदत्तके झ्ाराधना कथा कोशमें है, जो प्रो० चक्रवर्तों वाली कथासे मिलती हुई है । कथा इस प्रकार दै-- भरतक्ेत्रमं कुरुमरई गांवमें गोविन्द नामका एक ग्वाला रहता था | एक बार उसने एक जंगलकी गुफामें एक जैन शास्त्र रखा देखा । उसने उस शास्त्रको उठा लिया श्रौर पदूमनन्दी नामके मुनिको भेंट कर दिया। उस शास्त्रकी विशेषता यह थी कि अनेक महान्‌ श्राचार्योने उसे देखा था श्रौर इसकी व्याख्या लिखी थी और फिर उसे गुफामें रख दिया था । इसीलिए! पद्म नर्दि सुनिने भी उसे उसी शुफामें रख दिया । ग्वाला गोविन्द बराबर उसकी पूजा करता रहा । एक दिन उसे व्यालने खा डाला । मर कर वह ग्वाला निदानवश झ्ामपतिके घरमें उत्पन्न हुआ । बड़ा होनेपर एक बार उसने पद्म नन्दि मुनिके दर्शन किये श्रीर उसे अपने पूर्व जन्मका स्मरण हो आया । उसने जिन दीक्षा घारण कर ली और समाधि पूवक मरग करके राजा कोराडेश हुआ । वहाँ भी सब सुखोंका परित्याग करके उसने दीक्षा ले ली। उसने जिनदेवको पूजा की थी शरीर गुरूओकी सेवा की थीं अतः वह श्रुत- केवली हुआ । रत्न करड श्रावकाचार (शी ० 99८) में शाख्रदानमें 'कौणडेशका नाम दिया है। श्रौर उसकी संस्कृत टीका में उक्त कथा दी है । पं० शाशाघरजीने ( वि० सं० 9३०० ) अपने सागार' धघ्मांसतमें १--'कॉडेशः पुस्तकार्चावितरणविधिनाप्यागमाम्मो घिपारमू ||




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