मनुस्मृति सटीक | Manu Samretik Satik (1808) Ac711

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Manu Samretik Satik (1808) Ac711 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुस्सृति सटीकका सचीपत्र । ९ प्रकरण शृष् चलाक प्रकरण प्र इलाक प्रकरण पृष्ठ एलाप जिस कामना से दान देबे उसी अभर्थ पश्चियोंका कथन स्ट४. १९ | मंतकक स्पर्श करनेत्रालें दरशदिन को प्राप्त ोतारि, रुद३ र३४ | सीन णुल्क मांसादिका कथन, २८४. १३ | में ब्यौर समानीदक तीन दिनमें विधि पेश सत्कार से में! दान ग्रामके सकर और सकली आदि शुद्द दतेई 3१०... ६४ दताई जद प्ररष आर ले लेता नदी खाने योग्य हैं, रह. १४ | गुरुख मरणकां अधशीच ३0. ६५ हे बे दोनों स्वर्ग को लातें हूँ, र८४ २३५ | सकलियों के खामें को निन्दा, २९५. ९५ | ग्के गिरने आर रजस्वसा की ब्राइग्यों की निन्दा और दानके भव्य मछलियां का कथन, र५.. ४६ | शहट्ि्में दे. ईई कॉर्तन का निपेध, रह ३६ | सप और बानरादि के भरण का बालकों कमरनेका आप्योच ३९९. ई असत्य आदि का फल, रप४. २३० | निप्रेध, ररुई. १० | दोषषंसेनी देबाले बालककोभमि घोर * धर्म का संचथ करें, श८४ २३८ | भक्य पांचनखबालॉका कथन, ९६. १८ , मेंगा डदेंये, रेत१ ईर धरम को प्रथा, रप१, खर | सदमुन आदि के खाने में प्राय- दावपंसेनी चेत्राले बालफकी गगन ऊचांसिसम्फ न्घकरे नी चासिनददों, र८६ ४४ शिचत्त, सह9 1४ | संस्कार आदिफ़ियानकरें, ३१९९ रे फल मुज्ांदकों की एतितां को यज्नके पक छिंसाकी बिधि, .. २४०... २९ | बालफके उदकदा नर्मफथन, दर ७० छोड़ सबसे यहण करे, सप०. २४५ | अनिन्द्त थी आदि सिलाहुआ साथपढ़नेघालेफे मरनेगाशोच, 3१२. «१ ना बिना मांगे दु्टाकीभी भिच्चा बासी असनभी भाजनकंयोग्यहें, २९८. १४ | जिनकावार्दान झोगयाई उनव- भिजुक फे समीप जावे ते पजिसर समय ओर जिसर प्रकार नया किमरनेसं आशीचतीन दिन गद्य करें, स८० २४८ सांस का भलगा कहा हे उसके तकपति ओर पिताफ़े पथके बा- भिक्ता के न ग्रदया से फल, पप० २8४८ | अनुसार मांस भलण करे, २८६८. १० | ध्षेकको दोताहे, 3१९. ८९ बिन मांगीडु् भिद्दाग्रदणकरले, र८०. २१० | प्राक्तितमांसं मलणकानियम,/ “३००. 3१ को ग रू कन्याक मर नेमें उसको वुटुब के पनिय थी पतितें को झा मांसक सलणका निष्रघ, ३००. ३३ | आंधष तीनदिनतक इिग्यद्री छाडक सबसे सिच्ा सददणकर रुप८ ५१ | म्ाइमें मांस भाजन न करने सु भोजनकरें , ३१३ ७३ अपनेहीलियेसाधगर्सिमिकालिवे, रप८ सर | निन्दा, नए ३०१ 39 लोमनुष्यपरदेंगर्मद्ों और उसके लिन २ गाढ्ोंका अअरने भानग अप्रेशितमांसका भत्तण न करे. 3०१. देई | घरमेंकोर मरजाबेताजबसनेतब करना साछिये उनका कथन, रप्८ २५३ | यज्ञके अर्थ घधकी प्रभंसा,८ ” इ०९.. दे संजितनिदिन दरशमें यषहों उतने चाढ़ीं करके आत्मा का निवेदन पणुकंसारमेकेससयक्रानियम, . ३००. है | दिन आशोच करें, ड३ 50 करनें याग्य हूं, रप्८. २१४ | बेदर्कावर्दु दिंसाका निमेध, ० ३०३. 8३ | आचार्यआचायकंस्ती औरोरआया- असर्य कहने में निन्दा, रपर. २५५ | अपनेमुसर्केलियेभीवमारनमेदोष, 3१४ ४१ | यंकेपुजकमरनेमें था धीथ, ३९५. ८० याग्य पुज्रकों फुटुर्बकाभारदेवें, सुपर २५५ | वध ओर बग्धन नहीं करना | चेदपाठी श्ौरमामाओ दिकेसर नेमें ब्रह्मका चिन्तघन करें, रप्स २५८ | साहियें, ३०४... ४६ | आधोच, देख पे अ््मके फलका कथन, २९० २६० | सांसकों बनेंदें , ३०४... ४४ | राजाओर्अध्यापफआा दिकेसरने में घातकों का कथन, ३०४. 1९ | आशोच ३९५. पर पांचवां अध्याय ॥ मांसके बजनका फल, ३०६. ३ | सम्पे आशीदाकाकथन ३९५. ८३ सांपों के मरनेमें दर्धादन तक ऑअग्निद्दोज के अध्य स्रानसे शद्धि पषियों का भनके पंत्र भगजी से वणीच डातार, 3०9... ५८ | होती है, 3१६. घ४ बंदर जागनेदाले मनध्यो कीसत्य सपिण्डता का कथन 3०८. ६० | स्पथ निमित्त आशथोंच, 3१८. पे सो बषमे नीचे कैसे द्वातीदे इस जब माता के पत्र दावि तो दश अभी चेक दर्शनमें हि प्रकार का प्रश्न थे कना सर. * | दिन तक स्पण के धाग्य नदी म॑नण्यफदाडाकिस्पणम 3१७... ८ फिरमूसुसीकावररपिर्योसिकयन, रर१... रे दाती पिता से घस्व्सशित खान प्रह्मचारीश्रतक समाप्रद्योनेपय्यन्त सदसुन आदिक अभव्य बस्तओं करनेसे स्पशकफपाग्य डेजाताईे, 3०६ ६९ | प्रेत को उद्क दानांदि नकर, १८. ८८ का कथन, ही स्टर . ५ पुरुष स्वपर में बीयें भ्रादि को पतित आदिकोकों उदकदानादिन सदा मांसादिका निषेध रहे... ७ | सीचकर ख्रान से--और परादे करें, ३१८. ८४ अभय दुर्धों का फयन रव्र प् स्त्रीं में सन्तान को पैदा करके व्यभिचारिफीआआरदिकस्लियांकॉजस शुल्तों में दद्दो आदिक भर्यरें र० ' तीन दिनमें--शुद्दू दाताई, ३०८. ६३ | दान न देखे, 3९८ €०




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