समाधि - मरणोंत्साह - दीपक | Samadhi Marnotsah Deepak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्पादकीय हू
आचार्य औीसकलकीर्ति बर्ष २६ छवीसनी संख्या ( अवस्था ) दृत्थी,
ती बारें संयम लेई वर्ष ८ श्रीगुरुपासे रहीने व्याकण भगया, तथा
काव्य तथा न्यायशास्त्र तथा सिद्धान्तशास्त्र, गोस्मटसार तथा त्रिलोक-
सार तथा पुराण सर्बे तथा परम तथा अध्यात्म इत्यादि ? सबेशास्
पूर्व देश मांहै रहीने ८ बष माहै भणिने श्रीबागढ गुजरात मांहैं गाम
खुडेणे पधारथा । वर्ष ३४ ली अवस्था थई। तीवारे सं० १४७१ दर्द
खुड़ेणे पधारया । सो दीन २ तो केणे आचार्य ऊ लखा नाहीं, पीछें
साइश्रीपोचागृहे आहार लीधों । तेहां थको श्रीबागडदेश तथा गुजरात
देशमांदे विद्दार कीधो । वष २२ पयत नम हता जुमले वर्ष ५६ छपन
पयेत आवदों ( आयु ) भोगवीने घर्मप्रभवीने सं० १४९८ गाम मेसांशे
गुजरात त्याहीने श्रीसकलकीर्ति स्वगलोक तथा जैसी गति बंध होती
ते बंध बांधिने प्राक्ष ( परोक्ष ) थयाजी' !”
परन्तु रासमें १८ वषंकी अवस्थामें सं० १४६३ में पद्मनंदिसे दीक्षा
लेने. संयम पालने तथा ्राचायंपद पानेकी बात कही गई है* । इससे
दोनो कथनोमे परस्पर अन्तर हो गया है, जो किसी भूल वा गलतीका
परिणाम जान पड़ता है । पत्रकी बात कुछ सदी जेंचती है ।
१. यह ऐतिहासिक पत्र जैनसिद्धान्तभास्कर भाग ११ पृ० ११३ पर छुपा है ।
र.. वित पत्न वरस भठार सबल पणि संयम लेइए । २६
चउद श्रसठि वीस खडलि घन विनु बे चीकए ।
मोह मान मद मूक्ति पदमनंदि गुद दीखियाए 11२७
पच महाबत घार पंचइ इंद्री जण्णि वहा करीइ ।
चहुदिसि करि विहार सकलकीरति मणहररयण ॥२८
नयणाची हुनि रूप पाचारिज पद पामीयूए ।--( सकलकीरतिरास )
३, जहाँ तक हमने इस विषयपर विचार किया है, हमें वह मूल या गलती
User Reviews
No Reviews | Add Yours...