शब्दों का शहंशाह | Shabdon Ka Shahanshah

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Shabdon Ka Shahanshah  by प्रवीण शर्मा - Pravin Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्रान्तिकारी संत मुनिश्री तरुूणसागरजी में रोककर यह बताना पड़ा कि क्रान्तिकारी संत पधार चुके हैं । मंच पर बड़े-बड़े आचार्यों और मुनियों के मौजूद होने के बावजूद दिगम्बर परम्परा के सर्वोच्च आचार्य श्री वर्धमानसागरजी ने इस युवा मुनि को एकदम अपने करीब जगह दी । उनके आते ही सुस्त सभा में जैसे जान पड गई | श्रोता ही नहीं मुनि व आचार्यगण एवं आर्यिका माताएँ भी उन्हें सुनने को उत्सुक दिखीं । यह उनकी वाणी का आकर्षण ही था जो उन्हें कई आचार्यों से भी अहम स्थान दिला रहा था | जैसे ही उनका सम्बोधन शुख्र हुआ, श्रोताओं की रीढ़ सीधी हो गई और मन एकाग्र । आर्यिकाएँ, मुनि और आचार्य बहुत उत्सकुता से प्रतीक्षा कर रहे थे कि आज तरुणसागरजी क्या बोलने वाले हैं । आमतीर पर अपनी सभाओं में अविकल एक घंटा बोलने वाले इस संत के पास आज पाँच-सात मिनट ही थे । पर इन पाँच मिनट में ही उन्होंने पाँच घंटे चले बोझिल कार्यक्रम की बोरियत दूर कर दी । माहौल ताजगी से भर गया । मंच पर एक मुनि ने अचरज जताया - '3रे, इतने लोग कहाँ से आ गए ?' दूसरे मुनि ने हँसते हुए कहा- 'देखते नहीं, तरुणसागर जी बोलने वाले हैं ।' तो, तरुणसागरजी के बोलने का ही थे कमाल है कि रतलाम से रोहतक, दिल्‍ली से दावनगिरी और बेलगाम से बेलगोला तक उन्हें श्रोताओं का टोटा नहीं पड़ता 1 आमतौर पर हिन्दी से परहेज करने वाले कन्नड़ भाषी भी उनके प्रवचन कान लगाकर सुनते हैं । वे भी यहाँ सुनने की पूरी तैयारी से आए हैं । देखें किसके हिस्से क्या आता है... ! जा जल का रा ालालसासनतालभासससतामिभाताभाााऊ




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