श्री सयाजी शासन शब्द कल्पतरु | Shri Sayaji Shasan Shabd Kalpataru
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
1214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ्
देशी मापाओनी मातृभाषा संरंक्रत छे, एटले संस्कृत भाषामांधी जो कोई एवा शब्दों के एवां
घानुयुक्त शब्दों मद्ठी भावे के जे ए पांचे भापाओमां सदेढाइयो वापरी शकाय, तो तेत्रा
धराव्दो चापरवा तरफ वढण राखवामां वे तो एक भाषामाना शब्दों वीजी भाषावाठा
छोको सद्देढाइयी समजी धके. आयी शब्दोनी पसंदगी करवामां सैस्कृत शब्दों तथा
सेंस्कत भाषामांना धातुओमांयी चनेठा शब्दों प्रथम पसंद करवामां आव्या छे,
(३) आयी रोते संस्कत घब्दो बताववामां आव्या छे, तथापि फारसो तथा अरबी भाषाओमांधी
बरीजी भाषाओमांना शब्दों पण सती आवेठा फब्दो पा साय शब्दों होय, तेथी
सा छा रा पर तेमने पण छेल्ला आसनमां सूचववामां आत्या छे.
( ४) पसंदगीन। क्रम प्रमाणे झाब्दोने अनुक्रमांक आपवामां आग्या छे, हेवे तेवा अक भापती
वखते जुदा जूदा श्रब्दोने जुदा ज़दा अंक आपत्रा जोइए.
भा विद कि संस्कृतर्मानो एक शब्द अने तेज अर्थमां वपरायठों कोइ
'रेखछे घोरण, फारसी के अरबी शब्द होय तो तेने, एम बनने प्रकारना
शब्दोने एकज अक आपी शक!य नहीं, तेम करवाथी
गूंचवाडो थद जाय, आयी अमुक एक धोरण राख्या शित्राय रस्तो न होवाथी संस्कृत
भाषामांधी व्युत्पनन यएटा शब्दोने प्रथमना अक आपवामां आव्या छे, अने ते शिबा-
यनी वीजी भाषाओमांयी व्युत्पन्न घरढा शब्दोने पछीनो क्रम आपवामां भाव्यो छे, आ
उपरयी ते वीजी भाषाना शब्दों नज वापखा जोइए एवों आ प्रेयनो हेतु नथी, परंतु
एटढ तो खग्द के बनी थ्रके त्यांसुघी संस्कृत भाषामांधी व्युत्पन थएला शब्दोने
सामान्य शब्द गणी राश्यना भविष्यमां थता निवधोमां दाखल करता जत्रानुं घलण राश्ववा-
नी घारणा! छे,
(९ ) जुदी ज़ी भापाओना मिश्रण थईने जे घब्दों बनेठा होय तेमने ते पछीनों क्रम भाप-
बामां आव्यो छे.
मिधित् शब्दोन पछीनों कम
आप्या वि,
(६) लावा शब्दोने बदटे दूंका झब्दोने पसंदगोनों प्रथम अंक आपवामां आन्यो छे; कारण के
ब्यवहाररमा ते रूद य्रामां सर पढें छे.
दूंका धब्दोने प्रथमनो कम
आप्या वि
(७) देरक शप्द कई भाषामंयी ब्युत्पन्न थपेठो छे ते समजबाने ते ते शब्दनी पछी कॉसमां
ग ते ते नापानों प्रयमाक्षर उखवामां माम्यों छे. ते सक्षर
सरगना उपरयी कप भाषा छे ते समजवाने माटे दूंकामरोना
एक जूदी सूचो झाएवामां आावी ऐ. ( परिशिष्ट यू )
(८) चन्युं त्यासुधी, दरेक शब्द कई भापमांदी उतरी भाप्दो छे ते बताददा उपरात तेनी
हर य्युसत्ति अपवा तेनो मूठ घतु पथ प्रचडित इब्दकोशोन
स्वत शजारि, साधारे ददाददामां सान्या दे; नेमां गा. सजुसुसराम सदा
भरतराम मददेताए बनादेटों युजगती-ंप्रेजो शस्दकोट सुस्प दे. साय संगत शस्दोना
चातु गुलरानी, मराठी, दिंदी सपा दंगाडों सार सोदनराभते स्रनविय मीठे सदर
हो, तेगी है घन्दो दैरी देश शस्दनी स्पुरल के हेनों घा झाररता बाप नो; टेप
नान्सि डे एव सपयशनी उरण उई डू मे मर ठे
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