विरजानन्द प्रकाश | Virjanand-Prakash

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Virjanand-Prakash by भीमसेन शास्त्री विद्याभूषण - Bhimsen Shastri Vidyabhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ररे ) अपने उत्सवों पर प्रतिवष लगभग ८-१० लाख रुपया व्यय करती है, केवल एक वर्ष के उत्सव के व्यय सं महान कार्य हो सकता हैं । दूसरा कारण संस्थाओं का; आर वह भी स्कूल-कालिज जेंसी निरथक, निष्प्रयोजन, समाज के सिद्धान्त के विपरीत, अज्ञान का मसार करन बाली संस्थाओं का मोह है । किसी भी झुम प्रति का आस्म्भ होत ही, उसके अछडर के प्रस्फुटन से पृव ही, ये स्कूल-कालेजरूपी महा- रोग उसे नष्ट कर देत हैं । सम्पूण ट्रव्य आर दडाक्ति को आत्मसात्‌ करके पाश्चात्य मत के अनुयायी भारतीय सम्यता आर वाझयय की निन्दा आर उपहास करने वाले छष्णचम योरोपियन उत्पन्न करतें हैं, आर हम उन्हीं जैसे छोगों से की गई स्तुति नहीं निन्दा से अपने को अहोमाग्य समझते हुए सब झुभ प्रदृत्तियों को रोककर, इस पाप-म्रह़्नि में स्ात्मना लिस हुए जातें हैं । अस्ठु; आज सहस्ाब्दां के अनन्तर आाषज्याति के साक्षात्‌ कर्ता, उसके सर्वात्मना आराधक, उद्घारक ओर प्रसारक गुरुवर श्रीदण्डी विंरजानन्द जी के फावक चरित को आये जनता के करकमलों में स्मापित करत हुए, परम हर्ष हो रहा है । इस ग्रन्थ के लेखक श्री प्रो० भीमसेनजी यास्त्री एम. ए., एम. भो. एल. गुरुवर श्रीटण्डी विरजानन्द के परमभक्त हैं । आपको संसार की इस अद्भुत विभूति के वास्तविक चरित की न्यूनता चिरकाल से खटकती थी । इसलिए “जो बोले सो कुण्डा खोले” आमभाणक के अनुसार आपको ही इस साधन रहित होनें पर भी महान कार्य के लिए प्रयत्न ओर पुरुपाथ करना पड़ा ( जो न्यूनता को अनुभव दी नहीं करता, भला उसे क्या पढ़ी है कि चह ऐसे अनुसन्धान कार्यो में होने वाले कट्टों को सहन करे । ) आपने इस काय के अनुसन्धान के लिए. अनेक स्थानों की यात्रा की; एक-एक स्थान पर कई बार गए । इस प्रकार महदान्‌ प्रय्न करने से जो सामग्री संग्रहीत हुई, उसीके आधार पर यह अन्थ लिखा गया है । यह गुरुवर का प्रथम चरित है जिस में प्रथम




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