आपका लखनऊ | Aap Ka Lucknow

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उठे थे । अब तक लखनऊ हस्तकलाओं के लिए सारी दुनिया में मशहूर हो चुका था। यहां की परम्पराएं संस्कृति या कलाकृतियां इतिहास की अनमोल सामग्री बन चुकी थीं । लखनऊ अब हिन्दू धर्म के सनातन जैन बौद्ध सिख पथ के साथ-साथ सूफी सम्प्रदाय और इमामियां मजहब का गढ़ बन चुका था। सन्‌ 1827 में बादशाह नसीरूद्दीन हैदर की ताजपोशी के जुलूस में शिरकत करने वाली विदेशी पर्यटक महिलाओं ने लखनऊ की दरबारी तहजींब नफासत पुरतकल्लुफ आराइशों और लिबासों के साथ-साथ यहाँ के रस्मों आदाब की जबरदस्त तारीफ की है। उन लोगों ने यहाँ के बाग्रों और महलों को अलिफ-लैला की कहानियों की तस्वीर बताया है। अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने हुसैनाबाद के फिरदौस को संवार कर लखनऊ के माथे पर चाँद रख दिया। . हुसैनाबाद का इमामबाड़ा और उस के साथ के मकबरे सुनहरे गुम्बदों और कलियों चहार दीवारियों और कंगूरों को देखकर विदेशी पर्यटकों ने इसे क्रेमलिन ऑफ इण्डिया का नाम दिया था। लखनऊ के चौथे बादशाह अमजद अलीशाह के समय में हजरगंज अमीनाबाद बसा और फिर सन्‌ 1847 में नवाब वाजिद अली शाह तख्ते सल्तनत पर जलवा अफरोज हुए । यह लखनऊ में ललित कलाओं के चरण उत्कर्ष का जमाना था। उन्होंने 80 लाख की लागत से कैसरबाग की महलसरा बनवायी और वही उनके ख्वाबों की जन्नत थी । दर असल कैसरबाग ही उनके तमाम इल्मों अदब की गतिविधियों का केन्द्र था। ... जाने आलम वाजिद अली शाह बड़ें साहित्य प्रेमी थे । गद्य और पद्य दोनों पर्‌ उन्हें समान अधिकार था। संगीत और नृत्य दोनों में ही वे पारंगत थे। यह कत्थक और ठुमरियों के लालन-पालन का युग 14 आपका लखनऊ




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