गोतम प्रच्छा | Gotam Prachchha

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Gotam Prachchha by श्री मुनिराज तपस्वी जी -Shri Muniraj Tapasviji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७2 भावाथ - है मगवन ' जातुें रहने वाले सभी जीवों के झाप वघव हैं, झाप सर्वज्ञ हैं, शरथात्‌ सर्च चस्तुओं के ड्लात्ता हैं, सव्वद्सण शझर्याद्‌ केवलज्ञान के द्वारा सब चस्तुभों क देखने वाले हैं, तथा सर्व प्लुनियों में इन्द्र हैं, झत मैंने जो जो मश्न किये हैं झर्था किन किन कर्म के उदयसे उपयुक्त फल मिलते ई । उस विपय की सब बाते झाप फरमाब ( ₹२ ) एव पुदूठो भयव तियसिंदनरिद्नमियपयकस लो । सह साहिउ' पयत्तो वीरो महुराइ वाणीए ॥९३॥ भावार्थ --इस मकार थीगीतमस्वामी के पूछने पर, निदेश जो देवसा उनके इन्द्र श्र नरिंद्र याने राया ये सब निनके पादकमलंपें नमते हैं, ऐसे श्रोवीरमगवान मधुरदाणी के द्वारा मश्नों के उत्तर देने के लिए मदन चुप ( १३ ) हि र तो परमेश्वर की बानी भ्वण करते हुए जीव को कष्ट, 'ुधा या दपा बगंरह मालूम नददीं दोते । इस पर किसी दद्दा खी सी कथा कही जाती - ' ' “किसी गाँव में पक वणिक रहता या, उसके परमें




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