शकुंतला उपाख्यान | Shakuntla Upaakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
89
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शकुन्तला 1. त्द।
बेव्यों जाय सघुर अधरन पर #.
ससकि ाथ तथब हों कक्षरायों ।
उड़ि अलि गयो फ़ेरि फ़िरि आयो ॥
शवुन्तला द्वां ते टरि आई |
पोछे स्त्रमर लगो दुखदाई प्र
शकुन्तला परुनि जित जित डोले ।
तिति तित स्रमर गुजरत बोले ॥
राजा निरखत सन अनुरद्यो ।
सन मन मधघुकर सो अस कच£्ो ॥ ४४॥
घनाक्षरी छन्द । न
आओठन समोप पान गुंजततो सड़रात मानों बतकदझो को |
_ लगावत लगन कौ । चंचल टगनि को पलनि करो छोभित |
' ऋंछु्नो फिर आनि कर कपोल फलकन हो / प्यारी सस- |
| कनि भऋदरावति करति तुम उड़ि उड़ि बैठत पियत अघरन |
हो । दुरि दुरि दूरि हौ ते देखत खड़े रचत मानो दम कौने |
. काज मधघुप तुस घन्य डो ॥ ४४ ॥
'चौपाई ।
शकुन्तला केतो कक करे ।
. संग तें सघुप न टास्थों टरे #
. बन में सघकर बचुत सताई है
_शकुन्तला यह टर सुनाई ॥
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