डॉ॰ बी॰ आर॰ अम्बेडकर व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Dr. B. R. Ambedakar Vyaktitv Avam Krititv

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Dr. B. R. Ambedakar Vyaktitv Avam Krititv by डी॰ आर॰ जाटव - D. R. Jatav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय--ुह गीपन जन्म एवं बचपत श डॉ० अम्वेडकर को श्रपना जीवन-निर्माणा करने में श्रनिक प्रकार की मुसीबतों एवं कष्टों का सामना करना पड़ा । उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि निधेनता की एक कहानी है । उनको पैतृक रूप में कोई घन-सम्पत्ति प्राप्त नहीं हुई, क्यों कि भ्रछतों के पास धन-सम्पत्ति इकटूठी हो, ऐसा सामाजिक वातावरण नहीं था; लेकिन उनके पिता घनी वगं के न होते हुए भी समाज के प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा ईमानदार व्यक्तियों में से थे । उनकी श्राथिक स्थिति श्रच्छी न होने के कारण घर के खर्चे का निर्वाह सुचारु रूप से नहीं हो पाता था । ऐसी श्राथिक विपन्नता की हालत में वह श्रपने बच्चों को भली -भांति सुशिक्षित बनाने में संफल हुए । इसका एक मुख्य कारण यह था कि वह श्रात्म-सम्मान को श्रपने जीवन का झ्रद्ध मानते थे जिसे डॉ० श्रम्बेडकर ने धरोहर के रूप में सह्ष स्वीकार किया था । महाराष्ट्र के श्रछूत समूहों में महार जाति प्रमुख है । इसी जाति में डॉ ० श्रम्बे- डकर पैदा हुए थे । महार जाति की बस्ती गांवों के बाहर होती है जिसे 'महारवाडा” कहा जाता है । यह शब्द निस्दात्मक भावार्थ में प्रयुक्त किया जाता है । 'महारवाडा' गन्दे लोगों की गत्दी बस्ती का प्रतीक माना जाता है। सभी श्रछूत जातियों में महार लोग ही बड़े हुष्ट-पुष्ट, समायोजनशील, बहादुर, लड़ाकू श्रौर बुद्धिमान होते हैं। कहा जाता है कि ये महार लोग ही महाराष्ट्र के सूल-निवासी थे । महाराष्ट्र को थे लोग 'महार-राष्ट्रर मानते हैं । “'महार' शब्द की उत्पत्ति 'महा-श्ररि' से मानी जाती है जिसका रथ है 'महान शत्रु । श्रछुत जातियों में महार लोग ही प्रथम थे जो भारत में श्राने वाले यूरोपियन लोगों के सम्पक में श्राये । ईस्ट इण्डिया कम्पनी की बॉम्बे ग्रार्मी में उन्हें भर्ती किया गया । डॉ० श्रम्बेडकर के दादाजी मालोजी सकपाल श्रवकाश प्राप्त सनिक न्यक्ति थे । एक श्रच्छे महार परिवार से उनका सम्बन्ध था । उनकी दो सन्तानें जीवित रहीं । एक पुत्र रामजी सकपाल जो श्रागे चल कर श्रम्वेडकर के पिता क्हलाए श्रौर टसरी पुत्री मीरां । श्रस्बेडकर के पूर्वेजों का पुराना गांव “अम्बावाडे' रत्नागिरि जिले के एक छोटे से शहर मण्डनगढ़ से पांच मील दूर था । उनके पुवंज सपने गाँव में घामिक त्यौहारों के समय देवी-देवताथ्ं की पालकियां उठाने का काम किया करते थे जो उनके पारिवारिक सम्मान का दोतक था । उनके परिवार के सभी सदस्य सन्त कबीर के भक्त थे । भ्रतएव छुम्नाछूत में उनका कतई विश्वास नहीं था। वे यह मानते थे कि “नाति पांति पूछे ना कोई, हरि को भजे सो हरि का होई ।*




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