जाटों का इतिहास | Jaaton Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.7 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कालिका रजन कानूनगो - kaalika Rajan kanungo
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दिनेशचन्द्र चतुर्वेदी - Dineshchandra Chturvedi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उत्पत्ति एव आरम्भिक इतिहास ५ सामाय रूप से इस बात से सहमत हैं कि इन मामलों मे जाट आय श्युतत्ति से निसृत अन्य हिन्दू जातियों से बहुत अधिक भिन्न नही हैं। विज्ञान ने यह सिद्ध करने में भले हो सफलता प्राप्त वर ली हो कि जाट इण्डो-आयन मूलवश से सम्दघ रखते हैं परन्तु इस बात को पर्याप्त मात्रा मे स्वीइति उस समय मिल सकती है जबकि सस्कृत साहित्य मे उल्लिखित किसी प्राघीन आय जनजाति दे साथ उनकी समानता निश्वयात्मक रूप से स्थापित की जाय। चूकि इस सम्वघ मे ठोस बज्ञानिक साक्ष्य लगभग लुप्त हो चुके हैं इसलिए विंद्वानों को बाध्य होकर अवनानिव तरीके अपनाने पडें हैं। उदाहरणाय अब दे ध्वनियो की समानता का आश्रय लेते हैं । महाभारत के कुछ अध्यायों मे पंजाब ओर सिंघ की--भिन्हे ऐतिहासिक काल म जाटों की गहश्रूमि कहा जा सकता है--विभिन्न जनजातियों का उल्लेख है । उसमे एव जरब्रिवा और दूसरी भद्रक जातियों का वणन है--दोनों बाहिका थे यानी यहा बाहर स आये थे। सर जेम्स कम्पवेल और प्रियसन का कहना हैँ कि सस्कत साहित्य म यह जाटों का सबसे पहला उल्लख है। मद्रक राजा शल्य को कण के कटू उत्तर में इन लोगो की आदतों ओर चरित्र का सुस्पष्ट चित्रण है यद्यपि वह विक्ृतियों से मुक्त नहीं है। मद्रक अपने मित्रो के प्रति सदव निष्ठाहीन होत हैं. उनमे स्नंह वा अभाव होता है वे हमेशा दुष्ट झूठे और ऋूर होते हैं । ये दुप्ट लोग तला हुआ जो और मछली खात हैं तथा उनके घर में पिता पुष मां सास ससुर चाचा पुत्री दामाद भाइ पांत मित्रो और अतिथियों के साथ नौकरो और नोक रानियो के साथ स्त्री जोर पुरुप मिलकर एक साथ दारू पीते हूँ और गो-माम खात हूं दे कभी रोत हैं और कभी हमत हूँ उ है अश्लील बातचीत और गीता भ आनन्द आता है। उनकी स्त्रियां मदिरा के प्रभाव में आकर नगी नाचती हैं। उनका रग साफ होना है और कद लम्बा वे आवरण पहनते हैं भोजन अधिक मात्रा म वरत हैं तथा पवित्रता के नियमा के पालन सं व निलज्ज ओर लापरवाह हैं। वाहिको स जिह हिमालय गगा यमुना सरस्वती ओर चुरक्षेत्र के क्षेत्री से निष्यासित कर दिया गया है दूर रहना चाहिए । बाहिको वी रचना प्रजापति के द्वारा नही हुई जिन्होंन शुद्ध आर्थों वो रचना थी है थे पिशाल दम्पत्ति ब आत्मज हूँ जिनका नाम बाही और हीर था और जो विपामा व्यास नदी वे विनारे रहत थे। एक सकाल नाम का नगर ह और एक अपगा नाम की ननी है जहा जरन्रिक नाम का बाहिको का एक भाग रहा करता था। उनका चरित्र अत्यधिक निन््दनीय है। य॑ लोग बडी मात्रा म गाश्न आर उबला हुआ जो खात हैं या व जो को राटी जहसुन क साथ गा मास आर तन हुए जौ का भोजन करत है। उनकी स्त्रिया मदिरा पान करती है सावजनिक रूप से हसती ओर नाचती है ऊट अथवा गध की भाति ऊंची ओर ककक््श आवाज भ अश्लील गीत गाती है त्याह्यारो पर जब द नावती हूँ और एक्-रूसर दो लू बरम
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