कैरी साहब का मुंशी | Kairi Sahab Ka Munshi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
532
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्८ करो साहुव का मुंशी
अपने जन आए थे, वे तो घर को गाड़ी मे रवाना हो गए । जिनके कोई ने
थे, वे किसी सवारी पर बैठे श्रौर कहा -- वरा पोचखाना !
वग्ची, फिटन, पालकीवाले इस शब्द से खूद परिचित थे । वे जानते थे
कि वरा पोचखाना कहने से किमी वडे होटल में ले चलना हैं । किसी
युवती को श्रविवाहित यानी लावारिम पाया कि युवकों ने घेर लिया । एक
जवान कैरी माहेव की डॉगी की तरफ लपका था, मगर पहले में ही बहाँ
स्मिथ का भ्रासन जमा देखकर लौट ग्राया ।
कलकत्ते का गोस-ममाज डिचर्म कहलाता । इन डिचरों को इस एक
अभाव के सिवाय और कोई ग्रभाव न था । वे चिरंतन नारी-दुमिचा के झ्मि-
शापित थे । गौरांगी को कमी श्यामागी से पूरी करना उन दिनों एक श्रर्ध-
सामाजिक रीति-ता स्वीकृत हो चुका था । जब तक स्त्रयं कोई जनानखानें
की चर्चा से करे, कोई भी वह प्रमंग नहीं उठाहा । वह दुनिया निपिद्ध
फल की थी
घाद से घर
स्मिय की दो वड़ी-वड़ी बुदा गाध्यों पर लदकर सब घाद से घर
को रवाना हुए । सामने की गाड़ी के एक झ्रासन पर कैरी माहव श्रौर उसकी
हि धन न दे कक पं ह
पत्नी । गोद में नस्हां शिशु जैंवेज । दूसरे श्रासन पर राम वसु तथा टामस 1
पिछली गाड़ी में जॉन स्मिय, कैरी की साली --- कंबेरिन प्लैकेट और करी
के दी लक ना पॉलिलि तथा गटर दोगो है बाला यादत बरद
श्रपने घर लौट गया । कह गया, कल सवेरे जाकर भेट करूँगा । राम बसु
भी लौट जाना चाह रहा था, लेकिन कैसे ने जान नहीं छोड़ी ) पद मरे
दम हजार मीन तेरे रहन के बाद तिनका मिले, तो कौन घोड़े ! मर
नें चादवाल घाट में हो करी श्र उसकी पन्नी से सका पद दि
दिया था । गाडी पर जमकर बैठकर बातचीत जम इई : > की
का दानव सं न मानव ते शुरू हुई । बातें मद्यतः
था न; ध् राम वमु गम ट्दा चन ही थीं | डोरोथी ५ ह५ कभी ही कि
२. ते ! डोरोयी कभी-कभी महज
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