कैरी साहब का मुंशी | Kairi Sahab Ka Munshi

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Kairi Sahab Ka Munshi by प्रथमनाथ बिशी - Prathamanath Bishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्८ करो साहुव का मुंशी अपने जन आए थे, वे तो घर को गाड़ी मे रवाना हो गए । जिनके कोई ने थे, वे किसी सवारी पर बैठे श्रौर कहा -- वरा पोचखाना ! वग्ची, फिटन, पालकीवाले इस शब्द से खूद परिचित थे । वे जानते थे कि वरा पोचखाना कहने से किमी वडे होटल में ले चलना हैं । किसी युवती को श्रविवाहित यानी लावारिम पाया कि युवकों ने घेर लिया । एक जवान कैरी माहेव की डॉगी की तरफ लपका था, मगर पहले में ही बहाँ स्मिथ का भ्रासन जमा देखकर लौट ग्राया । कलकत्ते का गोस-ममाज डिचर्म कहलाता । इन डिचरों को इस एक अभाव के सिवाय और कोई ग्रभाव न था । वे चिरंतन नारी-दुमिचा के झ्मि- शापित थे । गौरांगी को कमी श्यामागी से पूरी करना उन दिनों एक श्रर्ध- सामाजिक रीति-ता स्वीकृत हो चुका था । जब तक स्त्रयं कोई जनानखानें की चर्चा से करे, कोई भी वह प्रमंग नहीं उठाहा । वह दुनिया निपिद्ध फल की थी घाद से घर स्मिय की दो वड़ी-वड़ी बुदा गाध्यों पर लदकर सब घाद से घर को रवाना हुए । सामने की गाड़ी के एक झ्रासन पर कैरी माहव श्रौर उसकी हि धन न दे कक पं ह पत्नी । गोद में नस्हां शिशु जैंवेज । दूसरे श्रासन पर राम वसु तथा टामस 1 पिछली गाड़ी में जॉन स्मिय, कैरी की साली --- कंबेरिन प्लैकेट और करी के दी लक ना पॉलिलि तथा गटर दोगो है बाला यादत बरद श्रपने घर लौट गया । कह गया, कल सवेरे जाकर भेट करूँगा । राम बसु भी लौट जाना चाह रहा था, लेकिन कैसे ने जान नहीं छोड़ी ) पद मरे दम हजार मीन तेरे रहन के बाद तिनका मिले, तो कौन घोड़े ! मर नें चादवाल घाट में हो करी श्र उसकी पन्‍नी से सका पद दि दिया था । गाडी पर जमकर बैठकर बातचीत जम इई : > की का दानव सं न मानव ते शुरू हुई । बातें मद्यतः था न; ध् राम वमु गम ट्दा चन ही थीं | डोरोथी ५ ह५ कभी ही कि २. ते ! डोरोयी कभी-कभी महज




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