राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला | Rajasthan Puratan Granthamala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जितेन्द्र कुमार जैन - Jitendra Kumar Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ )
का कोई भी पद इस पदावली के सूखपाठ में न आया होगा, फिन्ठु मैंने अपनी
और से पूर्ण सतकंता बरती है कि अनावश्यक रूप से पदों की आवत्ति न हो ।
रागरागिनियों के प्रस्तुतीकरण के संमय भी पूरी सावधानी बरी गई है
कि अनावश्यक पदों की पुनरादत्ति न ही, ' किन्ठु ऐसे पदों को प्रस्तुत करते समय
जो कि राग-रागिनियों की दृष्टि से अत्यन्त मदस्वपर्श ज्ञात हुए; इस सलियम में
न भी दी गई है । कि
मूलपाठ के पश्चात् दिये गए पदों को, पू्वे्रकाशित . सुख्य ्रथॉं के पदों से
मिला कर यह बताने का प्रयास भी क्रिया गया है कि किस पद का कितना झ्रंश
पू्वेप्रकाशित+ किस संग्रह के किस पद से, किस प्रष्ठ पर,. कितना मिछता दै.
और कितना नहीं ।
मूल पाठ-
, ,. सी के पद मुख्य रूप से दो परम्पराद्मों में श्राप होते हूं-
प्रथस है, (१) मौखिक अथवा लौकिक॑ परस्परा और
द्वितीय दै-(९) लिखित परम्परा ।
न
प्रस्तुत संग्रह. में मीरां के लिखित परम्परा से प्राप्त पदों को दी स्थान दिया
गया है । इस पदाबछीका म्रस्तुतीकरण. मैंने, अपने कुछ सिद्धांतों के आधार पर
भ्े
श् भें थे न
पदों की सौखिक अथवा ठौकिक परम्परा से लिखित-परम्परा कहीं अधिक
विदवसनीय और प्रासाणिक होती है. । इसी कारण सैंने मुख्यतः हस्तलिखित रथ
से मां मीरा वाई के पदों को ही इस पदावठी में स्थान दिया है| हां,पिछानी से प्राप्त
मीरीं के केवछ- ९. दरजसों 'जो कि ठौकिक अथवा मौखिक परस्परा के हैं, इस
संग्रह में ्मवश्य स्थान पा गए हैं। इन हरजसों को प्रस्तुत पदावली मैं स्थान देने का्
कारण, इन दरजसों को | छ ऐसी विशेषत।ँ हैं जो ६:
(एँ हैं जो कि प्राय: लिरि
पदों या हरजसों मैं प्राप्त होती हैं । य: लिखित परम्परा के
मुख्य रूप से सैंने राजस्थानी .भाषा . विशे! ं
आआाषा . विशेष कर सारवाड़ी में दो
दी ं प वाड़ी में प्राप्त पर
का को ही इस संग्रह सें रथान दिया है । मीरा के पदों के अघुना-
,जिल् हु प्रकाशित हुए हैं, उनमें से अधिकांश में मीरां की भाषा और
नल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...