राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला | Rajasthan Puratan Granthamala

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Rajasthan Puratan Granthamala  by जितेन्द्र कुमार जैन - Jitendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ ) का कोई भी पद इस पदावली के सूखपाठ में न आया होगा, फिन्ठु मैंने अपनी और से पूर्ण सतकंता बरती है कि अनावश्यक रूप से पदों की आवत्ति न हो । रागरागिनियों के प्रस्तुतीकरण के संमय भी पूरी सावधानी बरी गई है कि अनावश्यक पदों की पुनरादत्ति न ही, ' किन्ठु ऐसे पदों को प्रस्तुत करते समय जो कि राग-रागिनियों की दृष्टि से अत्यन्त मदस्वपर्श ज्ञात हुए; इस सलियम में न भी दी गई है । कि मूलपाठ के पश्चात्‌ दिये गए पदों को, पू्वे्रकाशित . सुख्य ्रथॉं के पदों से मिला कर यह बताने का प्रयास भी क्रिया गया है कि किस पद का कितना झ्रंश पू्वेप्रकाशित+ किस संग्रह के किस पद से, किस प्रष्ठ पर,. कितना मिछता दै. और कितना नहीं । मूल पाठ- , ,. सी के पद मुख्य रूप से दो परम्पराद्मों में श्राप होते हूं- प्रथस है, (१) मौखिक अथवा लौकिक॑ परस्परा और द्वितीय दै-(९) लिखित परम्परा । न प्रस्तुत संग्रह. में मीरां के लिखित परम्परा से प्राप्त पदों को दी स्थान दिया गया है । इस पदाबछीका म्रस्तुतीकरण. मैंने, अपने कुछ सिद्धांतों के आधार पर भ्े श् भें थे न पदों की सौखिक अथवा ठौकिक परम्परा से लिखित-परम्परा कहीं अधिक विदवसनीय और प्रासाणिक होती है. । इसी कारण सैंने मुख्यतः हस्तलिखित रथ से मां मीरा वाई के पदों को ही इस पदावठी में स्थान दिया है| हां,पिछानी से प्राप्त मीरीं के केवछ- ९. दरजसों 'जो कि ठौकिक अथवा मौखिक परस्परा के हैं, इस संग्रह में ्मवश्य स्थान पा गए हैं। इन हरजसों को प्रस्तुत पदावली मैं स्थान देने का्‌ कारण, इन दरजसों को | छ ऐसी विशेषत।ँ हैं जो ६: (एँ हैं जो कि प्राय: लिरि पदों या हरजसों मैं प्राप्त होती हैं । य: लिखित परम्परा के मुख्य रूप से सैंने राजस्थानी .भाषा . विशे! ं आआाषा . विशेष कर सारवाड़ी में दो दी ं प वाड़ी में प्राप्त पर का को ही इस संग्रह सें रथान दिया है । मीरा के पदों के अघुना- ,जिल् हु प्रकाशित हुए हैं, उनमें से अधिकांश में मीरां की भाषा और नल




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