प्राकृत भाषाएँ और भारतीय संस्कृति में उनका अवदान | Prakrit Bhashaen Aur Bharatiy Sanskriti Men Unaka Avadan

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Prakrit Bhashaen Aur Bharatiy Sanskriti Men Unaka Avadan by एस॰ एम॰ कन्ने - M. S. Kanne

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका हद व मा मागधी श्रौर उनको श्रनेके विधाएं, श्रश्वघोष के नाटकों में प्राप्त प्राचीन श्रघ मागधी श्र ठवकी या टक्की जेसी उप-बोलियाँ । (४) बैयाकरणों द्वारा वरित प्राकृत भाषाएं : इस वर्ग में संस्कृत नाटकों प्रौर मध्यकालीन सारतीय म्राय॑ भाषाओं की पाँच या छह बोलियाँ जैसे महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चुलिका पैशात्री श्रौर श्रपभ्र'श तथा उनकी कुछ श्रौर वोलियाँ । इस श्रेणी के श्रन्तरगंत नाव्यशास्त्र या गीतालंकार या रुद्रट के काव्यालंकार पर नमिसाधु की टीका जैसे काव्यशास्त्रीय एवं संगीत ग्रन्थों में वर्णित प्राकृतें भी परिगरिणत होती हैं । (४) भारत बहि:स्थ प्राकृत : खोतानी प्राकृत घम्मपद की भापा, खरोष्ठी लिपि में लिखे गए जिसके श्रंश खोतान में पाए जाते हैं तथा मध्य एशिया के दस्तावेजों में प्राप्त भाषा जिसे निया श्रौर खोतानी प्राछृत कहते हैं, इस वें सें श्राती हैं । (३) नाटकों में प्रयुक्त प्राकृत : इसमें श्राती हैं महाराष्ट्री, शौरसेनी (६) श्रशिलेखीय प्राकृत :. अशोक के समय से लेकर ब्राह्मी श्रौर खरोष्ठी लिपि में लिखी गई ये प्राकृत माषाएँ समस्त भारत श्रौर श्रीलंका के भागों में मिलती हैं । इनमें ताम्रपत्र, अनुदान-लेख श्रौर सिक्का लेख भी सम्मिलित हैं श्रौर इस तरह ये पाषाणु और धातु के अभिलेखों के समस्त क्षेत्र में व्याप्त हैं । (७) लोक-प्रचलित संस्कृत : हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों द्वारा प्रयुक्त क्रमश: इसके तीन रूप हैं । वैयाकरणों की लम्बी पीढ़ी द्वारा निमित इस्पाती ढांचे में प्राचीन भारतीय भाषा के स्थिर हो जाने पर ये भारतीय श्राय॑ साषाओ़ों के भाषित रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं । क्योंकि इस लोक-प्रचलित वाइमय में उन प्रयोगों के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं जो क्लासिक श्रेणी की परिष्कत संस्कृत में ठीक नहीं समके जाते थे 1 ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ग्यारहवीं ईसवीं शती तक के सांस्कृतिक मारत के चित्र को बनाए रखने के लिए दँदिक श्रौर लोकिक संस्कृत साहित्य के अतिरिक्त स्रोत के रूप में मध्यकालीन भारतीय श्रार्य-भाषा के इस वृहूद्‌ विस्तार को ध्यान में रखना झ्रावश्यक है ।




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