जनपदीय भाषाओं का साहित्य | Janapadeey Bhashaon Ka Sahity
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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से अंगिका की कृतियों का प्रकाशन होने लगा है । अकेले शेखर प्रकाशन ने ही
अद्यतन दस पुस्तकों का प्रकाशन कर दिया है। यह बड़े सन्तोप की वात है
अगिका के विकास मे हिन्दी के धुरन्घर विद्वाद् स्वर्गीय श्री लक्ष्मीनारायण जी
सुधांशु और राप्ट्रकवि स्व० रामधारीसिह दिनकर का सहयोग एवं आशीर्वाद
प्राप्त रहा था ।
श्री नरेश पाण्डेय चकोर ने अपने लेख “बगिका के साहित्यकार में
लिखा है कि बौद्ध ग्रन्थ ललित बिस्तर मे अंग-लिपि का लिपियों में चौथे
स्थान पर उल्लेख मिलता है। अगिका में बिहुला लोकगाथा काव्य तो भेगिका
का रस स्रोत ही है और अत्यन्त लोकप्रिय है । बिहुला काव्य की भाँति और
भी बहुत-सा क्राव्य कागज पर तो नहीं अंगिका भाषियों के कण्ठ में विराजमान
है और भगिका के लोक साहित्य की समृद्धि का मौन साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा
है। चकोर जी के लेख से अंगिका के क्षेत्र की समस्त साहित्यिक गतिविधियों
का सम्यक् वोघ हो जाता है । बज्जिका लोकगीतो में चारित्रिक आदर्श शीर्पक
लेख श्रीमती विनोदिनी शर्मा लिखित है। यह बज्जिका के लोकगीतों से
सम्बन्धित है । इसमें लोकगीतों के वरतुतत्व तथा. रसतत्व का विश्लेषण बड़े
सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है । बर्जिका काव्य की प्रेपणीयता पर निर्मल
मिलिन्द ने अपने लेख मे सोदाहरण प्रकाश डाला है। श्रीमिलिन्द ने वज्जिका
के क्षेत्र तथा उसमे प्रचलित पत्र-पत्रिकाओं का भी सविस्तार उल्लेख किया है
जो पठनीय है ।
श्री रमण शांडिल्य लिखित “'बज्जिका के रचनाकार शीपएेक लेख में
उन सभी साहित्यकारो, कवियों, लेखकों का नामोल्लेख है जिनकी बज्जिका
के लिये जीवन में कुछ न कुछ देन रही है। लेखकों के जीवन का सक्षिस
परिचय उनके कृतित्व के नसुनों सहित प्रस्तुत किया गया है । “हिन्दी और
उसकी वोलियाँ' णीर्षक लेख में डा० सियाराम तिवारी ने विदेशी विद्वानों
ओर खास तौर से ग्रियर्सन महोदय की मसान्यताओों का खण्डन करते हुए बड़ी
तर्कसगत शैली मे सिद्ध कर दिया है कि लोकभापषाएं हिन्दी की वोलियाँ ही है
अन्य कुछ नहीं । उन्होंने वोलियो के असख्य बब्दों से हिन्दी के भण्डार को
समृद्ध करने की वात भी कही ट् । वोलियो का व्याकरण उनका निजी दे
उसको हिन्दी में समाहित करने की कोई आवश्यकता नहीं । किसी भी वोलीं
के व्याकरण में एक सौंदर्य है; एक मिठास है जो उसी के साथ फवता है 1
“कॉल स्वणंकिरण ने अपने लेख में भोजपुरी भाषा और उसके साहित्य
पर इतने समग्र रूप में जानकारी प्रस्तुत की है कि सेख शोधार्थी के लिए भी
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