नवनिर्माण की पुकार | Navnirman Ki Pukar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
एव उपयोगिता मे चार वाद श्रौर लग गये!
्वालीस दिन फे प्रत्यन्त व्यस्त एव व्यग्र फार्यक्मसे भो श्राचार्य
श्री--दिल्ली फी जनता फ़ नैतिक भूख फो परा नहीं फर सके । लोगों
की प्रचल इच्छा थी कि '्राचार्य-प्री को श्रभी दिल्ली में हो फुछ दिन श्रौर
रहना चाहिये श्रौर श्रपने प्रनचनोंकि लाभ से उसको यचित नहीं फरना
चाहिये । पिलानी के उदार-नेता सेठ जुगलकिशोर जी विटलाने
भी श्राचार्य-थी से दिल्ली मे कुछ स्थायी रूप से रहने का श्रनुरोध
किया था । उस अउुरोब में दिरली फी जनता फी श्राकाँक्षा एव श्राय्ह
प्रतिघ्वनित होता था, परन्तु सरदार शहर मे माघ महौत्सव के श्रायोजन
के कारण श्राचार्य-श्री का राजघानी से धिष दिन रहना सभव न
हो सका श्रौर दिल््लोदासियों को श्रतृप्त छोडकर श्राचार्य श्री ७ जनवरी
फ़ो सरदारशहर फे लिए विदा हो गये । लौटते हुए ध्राने की
श्रपेक्षा विहार में कठोरता कहीं श्रधघिक उग्र हो गयी। वर्षा श्रौर
कुहरे को प्राकृतिक ्रटचनो से श्रचिकफ वडो श्रडचन स्थान-स्थान पर
रुकने के लिए क्या गया लोगों का श्राय्रह था । प्राग्रहु टाला जा सकता
या, किन्तु वर्पाष्मौर कुहरेको कौन टालता ? इस कारण होनेवाली
देरी को विहार की गति बढ़ाकर ही पुरा किया जा सकता था । रास्ते
में सर्दो का प्रकोप भी कुछ कम न था । '्राचार्य-श्री ने प्रपने जोवनफाल
में पहूली वार नागलोई में सर्दों के प्रकोप की शिफ्ायत की । प्रात -
काल उन्होंने फहा--“शाज तो इतनी सर्दों लगी है कि इसके कणि
सततभर जागरण करना पडा ! यह् पहला ही श्रवसर ह मि इतने लम्बे
समय तक सर्दी के कारण जागना पढ़ा हो । पर यह खेद की वात नहीं
है। खूब एकान्त का समय मिला । मनन, चिन्तन श्रीर स्वाध्याय मे
खूब जी लगा । ऐसा एकान्त समय मुझे कभी ही मिला करता है.
षर्योकि सारे साघु तो गहरी नीद मे सोये हुये थे ।”
चिन्तन, मनन झौर साघना की यह कैसी ऊंची मावना है ?
लौटते हुए पिलानो मे जो चार दिन का प्रवास हृश्ना उसका विषरण
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