नवनिर्माण की पुकार | Navnirman Ki Pukar

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Navnirman Ki Pukar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) एव उपयोगिता मे चार वाद श्रौर लग गये! ्वालीस दिन फे प्रत्यन्त व्यस्त एव व्यग्र फार्यक्मसे भो श्राचार्य श्री--दिल्‍ली फी जनता फ़ नैतिक भूख फो परा नहीं फर सके । लोगों की प्रचल इच्छा थी कि '्राचार्य-प्री को श्रभी दिल्‍ली में हो फुछ दिन श्रौर रहना चाहिये श्रौर श्रपने प्रनचनोंकि लाभ से उसको यचित नहीं फरना चाहिये । पिलानी के उदार-नेता सेठ जुगलकिशोर जी विटलाने भी श्राचार्य-थी से दिल्‍ली मे कुछ स्थायी रूप से रहने का श्रनुरोध किया था । उस अउुरोब में दिरली फी जनता फी श्राकाँक्षा एव श्राय्ह प्रतिघ्वनित होता था, परन्तु सरदार शहर मे माघ महौत्सव के श्रायोजन के कारण श्राचार्य-श्री का राजघानी से धिष दिन रहना सभव न हो सका श्रौर दिल्‍्लोदासियों को श्रतृप्त छोडकर श्राचार्य श्री ७ जनवरी फ़ो सरदारशहर फे लिए विदा हो गये । लौटते हुए ध्राने की श्रपेक्षा विहार में कठोरता कहीं श्रधघिक उग्र हो गयी। वर्षा श्रौर कुहरे को प्राकृतिक ्रटचनो से श्रचिकफ वडो श्रडचन स्थान-स्थान पर रुकने के लिए क्या गया लोगों का श्राय्रह था । प्राग्रहु टाला जा सकता या, किन्तु वर्पाष्मौर कुहरेको कौन टालता ? इस कारण होनेवाली देरी को विहार की गति बढ़ाकर ही पुरा किया जा सकता था । रास्ते में सर्दो का प्रकोप भी कुछ कम न था । '्राचार्य-श्री ने प्रपने जोवनफाल में पहूली वार नागलोई में सर्दों के प्रकोप की शिफ्ायत की । प्रात - काल उन्होंने फहा--“शाज तो इतनी सर्दों लगी है कि इसके कणि सततभर जागरण करना पडा ! यह्‌ पहला ही श्रवसर ह मि इतने लम्बे समय तक सर्दी के कारण जागना पढ़ा हो । पर यह खेद की वात नहीं है। खूब एकान्त का समय मिला । मनन, चिन्तन श्रीर स्वाध्याय मे खूब जी लगा । ऐसा एकान्त समय मुझे कभी ही मिला करता है. षर्योकि सारे साघु तो गहरी नीद मे सोये हुये थे ।” चिन्तन, मनन झौर साघना की यह कैसी ऊंची मावना है ? लौटते हुए पिलानो मे जो चार दिन का प्रवास हृश्ना उसका विषरण




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