मरुकुंज | Marukunj (shyrogka Nivarn)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चेतनरन ओर श्चय ५,
सेगकी विकृति कैसी सी अवस्थामें क्यों न हो, अथवा रोगके समी
लक्षण चहे जैसे क्यो न दों, अगर वह अपना हित नहीं समझता है,
तो झुसका नाश निश्चित है । छेकिंन, अगर रोगी यह जान के क
सकरा सारा. भविष्य संक्यमे है ओर फिरसे नीरोग होनेके लि वह
हर तरहका त्याग करे, तो तन्दुरुसं होनेकी संभावना न रहते हु भी,
झुसके लिभे आशा रहती है ।””
५ । ^ २ । .
चेतनरज ओर क्षय
जव सूरजकी किरणे किसी छोटे ठेदकी राह घरमे आती दहै, तो
` कमी-कमी उनके ` अलेलेमे अनगिनत ॒रजकण झुड़ते नजर आते हैं ।
य॒ रजकण सिर्फ असी जगह नहीं होते, बल्कि सारा वातावरण भिनसे `
भरा रहता दै । चकिये बहुत ही सूक्म ददते है, असल आम
- तौर् प्र दिखाभी नहीं पड़ते और न स्पर्स द्वारा ही जाने जाते हैं । ये
` रजकण. जङ् अर्थात्. निजीव होते है । असे ओर भिनसे भी वहुत ही
. सूक्ष्म --जितने सूक्ष्म कि चिना .खुर्दीन या सूक्ष्मदशक यंत्रके खाली आँखों
नजर न अनेवारे---भिन्न-सिन्न प्रकारके अनगिनत सजीव चेतनरज सखष्ठिमिं
मौजूद हैं । अंप्रेजीमें ये “ चैंक्टेसिया * कहलाते हैं । ये ज़मीन, हवा
आर पानीमें' हर॒जगद कम या ज्यादा तादादमें फैले रहते हैं; ये
आदमीके, शरीर पर और झुसके शरीरके अंदर थी पाये जाते हैं । सष्टिकी
विविध वस्तुओंकी झुतत्ति, स्थिति और लयके लिभे ये ज़रूरी हैं । जिनके
“विना स्ष्टिका बहुतेरा व्यवहार रुक सकता है । दूधका दही बनानेमें भी
ये सक्षम चेतनरज निसित्त बनते हैं ।
चेतनरजके कओी. प्रकार भसे हैं, जो सुक्ष्मदशंक यंत्रकी मददसे
.. पहचाने गये हैं । झुनमें कुछ ही का सम्बन्ध मठुष्यकी देहमें पैदा होनेवाले -
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