हास्य के सिद्धान्त | Hasy Ke Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
243
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ हास्य के सिद्धान्त
गयी है) हास्य के रूप में परिवर्तित होकर निकल जाती दे ।” #
गर्वीलि प्रकृति के मनुष्यों के विपरीत कम शक्ति वाले मनुष्य
रोने के स्थान पर हँसते हुए पाये गये हैं '्रोर फाँसी के तख्ते
पर लटकने को जाते हुए मनुष्यों ने माग में हास परिहास किया
है। इस प्रकार अतिशय शक्ति विषयक सिद्धान्त पूरा-पूरा नहीं
उतरता और उसके विस्तृत करने की ावश्यकता प्रतीत होती है ।
एक प्रसिद्ध परिभाषा उन्नीसवीं शताब्दी के लेखक स्पेंसर
(5९८९7 ) की है । उनके सिद्धान्त के श्रनुसार हास्य का कारण
८छमसंगति के निरीत्तए” ( ए€८९४ ० ग [1८०7 हःप० प )
में हे। यह ध्यान देने की बात है कि सभी प्रकार की असंगति
हास्य का कारण नहीं बन सकती । इस जीवन में तथा संसार में
ऐसी नेक संगत घटनाएँ होती रहती हैं जिन पर मनुष्य को
बिल्कुल हँसी नहीं '््ाती है । सच्चरित्र तथा सल्नन मनुष्य दुखी
रहते हैं और दुष्ट उन पर श्रत्याचार करते हैं। दोषी न्यायकर्ता
बनकर निरपराधो को दरड देते है, मोर ऐसे सुधार की प्रतिष्ठा
होती है जिससे दुगुण श्रौर बढ़ते हैं-जिन पर कोई बुद्धिमान्
मनुष्य नही हस सकता है । इससे प्रकट ह संगति हास्य का कारण
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