हास्य के सिद्धान्त | Hasy Ke Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ हास्य के सिद्धान्त गयी है) हास्य के रूप में परिवर्तित होकर निकल जाती दे ।” # गर्वीलि प्रकृति के मनुष्यों के विपरीत कम शक्ति वाले मनुष्य रोने के स्थान पर हँसते हुए पाये गये हैं '्रोर फाँसी के तख्ते पर लटकने को जाते हुए मनुष्यों ने माग में हास परिहास किया है। इस प्रकार अतिशय शक्ति विषयक सिद्धान्त पूरा-पूरा नहीं उतरता और उसके विस्तृत करने की ावश्यकता प्रतीत होती है । एक प्रसिद्ध परिभाषा उन्नीसवीं शताब्दी के लेखक स्पेंसर (5९८९7 ) की है । उनके सिद्धान्त के श्रनुसार हास्य का कारण ८छमसंगति के निरीत्तए” ( ए€८९४ ० ग [1८०7 हःप० प ) में हे। यह ध्यान देने की बात है कि सभी प्रकार की असंगति हास्य का कारण नहीं बन सकती । इस जीवन में तथा संसार में ऐसी नेक संगत घटनाएँ होती रहती हैं जिन पर मनुष्य को बिल्कुल हँसी नहीं '््ाती है । सच्चरित्र तथा सल्नन मनुष्य दुखी रहते हैं और दुष्ट उन पर श्रत्याचार करते हैं। दोषी न्यायकर्ता बनकर निरपराधो को दरड देते है, मोर ऐसे सुधार की प्रतिष्ठा होती है जिससे दुगुण श्रौर बढ़ते हैं-जिन पर कोई बुद्धिमान्‌ मनुष्य नही हस सकता है । इससे प्रकट ह संगति हास्य का कारण +¶11© 8771116 {€दवा18 #111110 (16 0€ाद्जाछपा ~ {66 17 11811761... ... 1८१ 1118 18 {00 81168811} 10 {£16- {07216 11.. ...11 18 फा 116 शादणछपा 21 10१6 1081101 1108! 1118 €1200721101 18 ©वा716व = ०पा,..वात (6 श्णा]6 18 0116 01 10० {1781 @12700€168. छिप 28 (116 1700८186 01 10%© 02111678 @16प्छष 771 528 870@1167106 470४8, 116 0०111168 01 1716८ 106 868 ता पा 3616 11018 ९1167 1176 0615४10८ ©01118117 ध 10५७ 88 87) 61616 18 89००७ 1५ 7670१ ०९ ५6 21७16त॥ 80706 9 1115 हशर 6८९0168 80710108 दत ७8688 77 ]उ्पद्वा४०'




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