साहित्य सरोवर | Sahitya Srovar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कबीर पर सिद्धों भर नाथों का प्रभाव
मनुष्य के ज्ञानार्जन के दो मार्ग हैं । वह पुस्तकों से ज्ञान गाते करता हैं एवं
पनुष्य-जीवन से । कवीर ने दृक्य सा अपनाया, क्योंकि पहला शार्र उसके लिए, चन्द
था | कबीरदास ने स्वयं कहा है --
“मति कागदे छुपी नहीं, कलम गही नहीं हाथ ।'
धमि बिनु त फलम वितु कागज चिनु श्रच्छर सुधि होई
फलतः उन्होंने साघुद्यों से ज्ञान की प्राति की इष चेवमंयं सिंदों श्र नाथों से
विशेष प्रमावित हुए | प्रकृति का सर्वसान्य सिद्धान्त हैं कि प्रत्येक व्यक्ति; सतत का फल
होता है शौर भविप्पर के लिये परूल बनता है | प्रसेक कवि, नेता चा सुधारक अपने
से पूरव के विचारो को अहु करं श्रपना व्यक्तित्व बनाता दै । कबीर ने भी सिद्धों दर
नाथो कै विचारों को श्रपनाया | इनमें मी वह नाधों से विशेष प्रयाधित थे । यह प्रसान
दो प्रकार का है--शेलीं का श्रौर विचार का |
शली का प्रभाव
सिद्धों श्रौर माथों का स्लेत्र, विशेषता सम्यप पर्ग श्र निम्न बै था] उनके
पमस्कार मरे व्यक्तित्व एवं श्रटपटे उपदेशों से सव्यप एवं निम्न श्रेणी के सारी-नर बढुत
प्रभावित थे । फलत उन्होंने पंडितों की संस्कृत का माह छोड़ कर जनमापा को
श्रपनाया । कबीरदासजी क सापे भी यही समस्या थी | उनके श्रोता भी निम्न बरसे
सौर मध्यम वर्ग के थे । आता उन्होंने प्रचलित जनमापा में झापना उपदेशनकोप लुटाया
और कहा--
संस्कृत है कूप जल, भाषा बहता नीर!
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