साहित्य सरोवर | Sahitya Srovar

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Sahitya Srovar by गोपीनाथ तिवारी - Gopinath Tivari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कबीर पर सिद्धों भर नाथों का प्रभाव मनुष्य के ज्ञानार्जन के दो मार्ग हैं । वह पुस्तकों से ज्ञान गाते करता हैं एवं पनुष्य-जीवन से । कवीर ने दृक्य सा अपनाया, क्योंकि पहला शार्र उसके लिए, चन्द था | कबीरदास ने स्वयं कहा है -- “मति कागदे छुपी नहीं, कलम गही नहीं हाथ ।' धमि बिनु त फलम वितु कागज चिनु श्रच्छर सुधि होई फलतः उन्होंने साघुद्यों से ज्ञान की प्राति की इष चेवमंयं सिंदों श्र नाथों से विशेष प्रमावित हुए | प्रकृति का सर्वसान्य सिद्धान्त हैं कि प्रत्येक व्यक्ति; सतत का फल होता है शौर भविप्पर के लिये परूल बनता है | प्रसेक कवि, नेता चा सुधारक अपने से पूरव के विचारो को अहु करं श्रपना व्यक्तित्व बनाता दै । कबीर ने भी सिद्धों दर नाथो कै विचारों को श्रपनाया | इनमें मी वह नाधों से विशेष प्रयाधित थे । यह प्रसान दो प्रकार का है--शेलीं का श्रौर विचार का | शली का प्रभाव सिद्धों श्रौर माथों का स्लेत्र, विशेषता सम्यप पर्ग श्र निम्न बै था] उनके पमस्कार मरे व्यक्तित्व एवं श्रटपटे उपदेशों से सव्यप एवं निम्न श्रेणी के सारी-नर बढुत प्रभावित थे । फलत उन्होंने पंडितों की संस्कृत का माह छोड़ कर जनमापा को श्रपनाया । कबीरदासजी क सापे भी यही समस्या थी | उनके श्रोता भी निम्न बरसे सौर मध्यम वर्ग के थे । आता उन्होंने प्रचलित जनमापा में झापना उपदेशनकोप लुटाया और कहा-- संस्कृत है कूप जल, भाषा बहता नीर!




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