पनघट | Panaghat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
928 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साघुकी हर तरहसे परीक्षा की, ओर वह हर तरहसे म्वरा सोना
निकला । आदमियोंमें कई दोष होते है, संन्यासीम एक भी न था ।
महाराज एक दिन बड़ी नम्रतापे बोले, “ स्वार्माजी, राजकुमारी
काबेता साखना चाहती है । मैंने बहुत ढूँढ़ा, परन्तु ऐसा आदमी
कोई न मिला, जिसपर विश्वास किया जाए । ””
सेन्यासीने अधी वातसे पूरा भाव समक लिया, श्रौर बिना
सङ्कोचके उत्तर दिया, जव तक यहाँ हैं, हम पढ़ा दिया करेंगे । '*
महाराजके मनकी मुराद पूरी हो गई । राजकुमारी कविता
सीखने लगी ।
र
चार मह्दीनेके वाद महाराजने संन्यासीत पूछा, “ राजकुमारी
उषाने क्या सीखा १ ”?
संन्यासीने मनको मोह लेनिवाली बड़ी बड़ी और सतेज अंँखिंसि
महाराजकी श्र देखा, श्रौर मुस्कराकर उत्तर दिया, ^ कवि पिताकी
बेटी है, बहुत कुछ सीख चुकी । इतने थोड़े समयमें कोई दूसरा
आदमी कुछ भी न साख सकता । मगर. राजकुमारीकी कविता
देखकर खुद हम भी दज्ञ रद्द जाते हैं | ””
महाराजको ्माश्वर्य्यं हुआ, “' मगर केवल चार मर्हानोमिं ?
सेन्यासीने उत्तर दिया, “ राजन् , कवि बनते नहीं, पैदा होते हैं ।
आगकी चिनगारियाँ राख तले सोई रहती हैं; कविताकी कला सीनेमें
छिपी रहती है। गुरुका काम केवल यह है कि राख हटाकर
कविताकी उन चिनगारियोंको सचेत कर दे, आग अपने शाप
सुलगने लगेगी । इसके लिए यत्न करनेकी भी जरूरत नहीं ।
हृवाके कोंके ही उसके लिए घीके छुटि बन जन्ते हैँ | राजकुमासमे
यद शक्तिर्यौ पहले ही मौज थीं, हमने उन्हें केवल जगा दिया है,
है
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