बनारसीदास | Benaraseevilas

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Benaraseevilas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोद्क यकद दकए बहुत पथ शरीर ॥ चढ़ पग तच पि पीर पच्छ तिस्च्‌, । कलाल चिरिगर चरेन निप्याल पहुतु 0 हिन्दी का प्रारस्तिक कस १५ थीं और १६ बी शताम्पी को इस दिस्री का प्रारस्सिक फ ऋष्‌ सकते है ! एन पो शहास्वि्ों में सस्कत और अपन श मापा के कबिभों छा प्रन मी दिन्दी मापा को आर बनिष्षगा शबा हन्दोंने संरहत और ्रपध्ररा केसाब साब रिणी भे रचना खिलला प्रारम्म ऋर विया। ऐसे रपबायों में मट्टारक संकृति पौर त्रप जिनदास का माम कम्द्षेणनोय है ! दोनो ही घसत के काप अर दे चिह्न थ कमोंकि अकत सक धमि ने सक्त में भादिपुराण, पुरागास्प्रसपह, घम्प्क्पार असिति, परोषर चरित्र बद्ध मानपुराय '्यादि प्रस्थों की रचना को थी इसी प्रश्मर ऋ जिनदास ने भी परत मे ११ ' से अधिक रघनाय छिती हैं. जिनमें इरिवशापुणाण पद्पुराण अम्बूसवामी परिव दनुमच्यरिवर ख़तकथा कोर आदि 'उस्तेलनीय हैं । सहारक सकद श्रे दिम्यौ रना में कमोऋरफकगीय णब प्ाराषनासार अभी तक उपक्प हुये हैं। भयपि दोनों दो निस्वह रषनार्ये नशी है कन्द दिनी मापा के बिछास जानने कष्य बुध दपयोगी सिद्धि मौह! बा जिसवास को दिस्दी रचनाओं पर शुज्एसी मापा ब्य मसाथ स्पष्ट दिखाई देता है । पन दिल्‍्दी रचलाध्ों में 'पा्िनाथ




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