चित्र शाला | Chitra Shala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.72 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उद्घार
(१)
“'चेटी सुशीला, '्रव रहने दे । चारद तो चज गए, देग्या
जायगा । आज दिन-भर और इतनी रात काम करते ही दीती ।””
रात के चारह दज चुफे हैं। संसार का '्धिकांश भाग निद्दा की
गोद सें खर्राटे ले रहा है । जाग केवल ये लोग रहे हैं, जिन्हें सागने
में सोने की अपेक्षा विशेष थ्वानंद श्रीर सुख मिलता है, '्रथदा ये
लोग, जो दिन को रात तथा रात को दिन सममते है, घोर या
फिर ये लोग, जो रात के '्रंघकार श्रौर लोगों दी निदावस्था से
लाभ उठाने को उत्सुक रहते हैं । परंठु इनके घतिरिक्त ऊप
थ्ौर प्रकार के लोग भी जाग रहे हैं । ये ल.्ग वे हैं, लिनकें उद्र-
पोषण के लिये दिन के वारदद घंटे यथेप्ट नहीं, जिनकें लिये सोने
घ्औौर ध्राराम करने का अर्थ दूसरे दिन फ़ाका करना हं, जो निदा-देदी
के प्रेमालिंगन का तिरस्कार केवल इसलिये कर रहे हैं कि उसफे
बदले सें दूसरे दिन उन्हें छुधा-रायसी की मार सदनी परेंगी ।
उनकी श्राँखें छुकी पदती है”, सिर चकरा रदा है; परंतु पेट को
लुधा की यंत्रणा से बचाने के लिये वे घ्पनी शक्ति के ययेनपुर्ये पर-
साणुसों से फाम ले रहे ह।
एफ छोटे-से घर में रेंद्ी के तेक का दीपक टिमटिसा रद ऐ । उसी
दीपक के पास एक फरटी-टूटी चटाई पर दो स्त्रियों छुकी हुई देटी
हैं । उनके सामने एक नीली स़सल का लहेँगा है, पौर थे दोनों
उस पर का काम दना रही एं । एफ दी उसर
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