हिन्दी साहित्य में राष्ट्रीय काव्य का विकास | Hindi Sahity Men Rashtriy Kavya Ka Vikas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
354
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
प्रस्तुत प्रद थ मे राष्ट्रीय भावना के विकास का उद्देश्य ही रखा गया, इस
लिए इसमे किसी विशेष कवि या पुस्तक का सपूण मघ्ययन अभीष्ट नदीं रहा ।
दस्मे अतिरिक्त प्रस्यक युग दी कात्य घारा में केवल राग्टीय भावना का ही विवेचन
क्या गया है । इस प्रव घ का अध्ययन काल भी वहुत व्यापक हो गया है। चारणवाल
से आवुनिक कान ६५० वप के लगभग ह आजकल कौ प्रवत्ति कम मवयि रखकर
अध्ययन करन की आर अधिक हू क्तु राष्ट्रीय भावना के क्रमिक विकास वा
अध्ययन वरे करे लिए इतना समय उचित प्रतीत हुआ । वास्तव में भारते दु युग से
स्वतव्रता प्राप्ति तव हिन्दी कान्य जगत म राष्ट्रीय मावना पत्ल वित जौर पुषित हई
ट्, दसके पूव बीरमाया काल ते रीनि रास तकं इमका प्रवाहं क्षीणा ही रहा ह् ।
समाज की स्मृति वहूत ही स्रामयिक् ओर् अस्थायी होती ह 1 सभाज कु
वर्पोमं हौ महत्वपूण घटनाआको विस्मृतकर देवाह मौर बेवल बतमान को ही
सब कुछ समझता हू । भारतीय स्वाधीनता-मग्राम मे अपने घाणा का उत्मग करने
बनि अनेक साष्टप्रेमी व्यक्तियों को हम मुला चुके हैं । हिही. साहित्य के अनेक
साहित्यकार तथा कवि प्राचीनवाल से ही अपन युग वी राष्ट्रीय भावना की सफल
अभियक्ति करते आए हैं कितु उनकी अनेकों रचनाएं लुप्पप्राय हैं । देग वी
स्वतम्ता प्राप्ति के परचातु यह आवश्यक था कि युगा से चली आई हि दी साहित्य
वी राष्ट्रीय भावना का क्रम-वद्ध अध्ययन क्या जाता । गत वर्षी मे हिंदी वीर
काव्य एव राष्ट्रीय काव्य पर कुछ काय अवश्य हुआ हु।
दिती साहित्य म वीर काव्य पर डा दीकमर्सिह् तोमर का प्रवघ प्रवाशित
हुआ हू जिसमे सवत १६०० से १८०० ई तक के साहित्य का अध्ययन किया गया ।
डा उत्पनारायण तिवारी ने वीर वाव्य पुस्तक मे बहुत से वीर रम सबधी पदा का
सप्रह कर आलोचनात्मक् अध्ययन किया है । डा० सुधी द्र ने 'हिदी काय म युगातर
प्रवधघ मे राष्ट्रीय साहित्य का सुदर विवेचना किया । प्रयाग विश्वविद्यालय से
शलकुमारी गुप्ता का राष्ट्रीय बाव्य सदघधी प्रबय स्वीइस हुआ किन्तु इसमें
अध्ययन काल १८०० ई तक ही सीमित रखा गया है! हिन्दी साहित्य मे राष्ट्रीय
भावना भारते दु युग से प्रारम होकर वतमान क्वान म सन् १६४७ तक चरम सामा
को पुसी 1 हिरी साहित्य मे राष्ट्रीय भावना के विकास पर दिद्वाना द्वारा कुछ
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