अपूर्वा | Apurva

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Apurva by केदार नाथ अग्रवाल - Kedar Nath Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मे बुझी आग की गाँठ है सूरज : हरेक को दे रहा रोशनी-- हरेक के लिए जल रहा-- ढल रहा-- रोज सुबह निकल रहा-- देश और फाले को वदल रहा । २ अप्रेल, ६८ मूर्वा (२१




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