भूखा बंगाल | Bhukha Bangal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसका जन्म ही वेश्या के ग्रह में हुश्रा था, अथवा संसार ने उसे वेश्या बना दिया था, सो कह सकना कठिन है। परन्तु थी वह बनारस की प्रसिद्ध वेश्या ही। मजे की बात तो यह है कि नाम रहा है उसका सावित्री । सत्यवान की सावित्री नहीं, पति को जीवन- दान देने वाली सावित्री नद्दीं । बनारस की, नाच-गान के लिए लब्ध- प्रतिष्ठ, सावित्री रानी। कभी कोई हंसी मे कह उठता-- “वाह, वाह; स्या मजेका नाम रख दिया है तुम्दारा ! कहाँ वह सती, कहाँ ठम वेश्या-एकदम उल्य, सम्पूणं श्रनमेल ! तब सावित्री गभ्भीर भावुकता से उत्तर देती-“झनमेल पर ही ढुनिया टिकी हुई है न, मददाशय !”--फिर चुस्की का गिलास मु ह से लगा लेती । दुनिया को लरूटना उसने सीखा था । मिध्या, प्रवश्नना, प्रेमाभिनय से मनुष्य का रक्त शोषण करना उसका काम था । मेहदौ-सी रङ्गीन बनी, सज-सजा कर एक प्रलोभन फैलाया करती । उसके भक्तगण दिन-रात उसके बन्दना-गान से उसे स्वग में चढ़ाया करते । वह सावित्री उस दिन पहुँची थी कलकत्ता शहर में । बनारस से वह एक सेठ जी के घर मुजरा के लिये कलकत्ता बुलाई गई थी । तीन




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