हिन्दी भाषा और लिपि | Hindi Bhasha Aur Lipi
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० भूमिका
फ़िरदौसी के शाहनामे में मिलता है । फ़िरदौसी ने सेमिटिक कुल की भाषाओं
के शब्दों को श्रपनी भाषा मे अधिक नहीं मिलने दिया था, परन्तु श्राज
कल साहित्यिक फारसी मे अरबी शब्दों की भरमार हो गई है । रूसी
तुरकिस्तान की ताज़ीकी, अफगानिस्तान की पश्तो तथा बलूचिस्तान की
बलूची भाषाएँ नई फ़ारसी की ही प्रशाखाएँ हैं ।
२, पैशाची*--यह माना जाता है कि मध्य एशिया की च्रोरसे
द्माय्ये लोग भारत में कदाचित दो मुख्य मार्गा से ्राएथे। एकतो दिदू-
कुश पवेत के पश्चिम से होकर काबुल के मागं से श्रोर दूसरे बज ( 0:४5 )
नदी के उद्गम स्थान से सीधे दक्षिण की श्रोर दुगंम पवंतों को पार करके |
इस दूसरे मागे से श्राने वाले समस्त झाय्ये उत्तर भारत के मैदानों में पहुँच
गए होगे इसमे संदेह है। कमसे कम कुह श्चाय्यं हिमालय के पहाड़ी
प्रदेश मे अवश्य रह गए होगे । इन लोगों की भाषा पर संस्कृत का प्रभाव
न पड़ना स्वाभाविक है, क्योकि संस्कृत का विशेष रूप भारत में छाने के बाद
हुआ था । आज कल इन भाषाओं के बोलने वाले काश्मीर तथा उसके उत्तर
में हिमालय के दुर्गम प्रदेशों में पाए जाते हैं । यह भाषाएँ भारतीय-असंस्कृत-
आय-भाषाएँ कहला सकती हैं । इनका दूसरा नाम पिशाच या दर्द भाषाएँ
भी है । काश्मीरो भाषा इन्हीं में से एक है। इस पर संस्कृत का इतना अधिक
प्रभाव पड़ा था कि कुदं दिनों पूवं तक यह भारत की शेष श्ञाये भाषाओं में
गिनी जाती थी । काश्मीरी भाषा प्रायः शारदा लिपि में लिखी जाती है।
मुसलमान लोग फारसी लिपि का व्यवहार करते है ।
३, भारतीय आयं भाषा--यह शाखा भी तीन कालों मेँ विभक्त
की जाती है- प्राचीन काल, मध्यक्राल, तथा श्माधुनिक काल । (1) प्राचीन
काल की भाषा का अनुमान ऋग्वेद के प्राचीन अंशों से हो सकता है ।
इस काल की भाषा का और कोइ चिन्ह नहीं रहा है। (7) मध्यकाल की
भाषा के बहुत उदाहरण मिलते हैं। पाली, अशोक की धमेलिपियों की
१ शि. स., भूमिका, भा० १, अ० १०।
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