पपीहा | Papiha

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Papiha by श्री गुलाबरत्न बाजपेयी - Shree Gulaabratn Bajapeyai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सावन की रातः दरवारमे “सावनकी रात” का जठसा मनाया लायगा । यद इतना प्यारा ओर अनोखा होगा कि आज तक किसीने इतना सुन्दर उत्सव न देखा होगा । इस जल्सेम राजकोषसे लम्बी रकम खर्चेकी जायगी ।. कवि सघुप घटा बन- कर छायेगें और उनकी कविताके छन्दोमे राजनटी मीरा मयुरी वनकर आनन्द चत्य करेगी ।. महाराजका हुक्म है; उस दिन सब लोग ठाटवाटके साथ. राज दरवारमे हाजिर हो ।” चारो तरफ तहलका सच गया । लोग खुश्ीसे उदक पडे । जल्सेके लिये धूमवाससे तैयारियाकी जाने लगी ।. अमीरोने दिल खोलकर नडे पोशाकोकि आईर दिये, गरीब कर्ज ले ले कर साजोसामान इकट्ठे करने लगे । इत्र फुलेल तो इस लम्बी तादादम खरीदा गया; कि दुकानदार मालोमाल हो गये! न ओर फैशनकी एक भौ चीज न रह गयी ! (२) आज जहा चारो ओर आनन्दका वागीचा कदरा रहा था; वहा एक अब- लिली कटी सुरा री थी 1 आज जहा लोगोंकि दिल-दरिया वन चुके ये, चहा एक दिलमे उदासोका तूफान चल रहा था । यह कौन थी ?--महारानी अजना ! राता भयानक सनाया, वह विस्तरपर लेटी हुई आकाशकें तारे निनं रही थीं! चाद्‌ चसक रहा था, पर उनके दिलमे अन्वेरो घिरी थी । वागीचेसे फूलोके झुण्ड अठखेलियाकर रहे थे; पर उनका दिल नुकीले काटोरि न्चल्नी वन रदा था। वह इस समय प्रथ्वीमण्डलकी एक निस्तेज आभा थी 1 उनका हृदय भूकम्पकी तरह हिल रहा था। शरीरके अन्दर पीडा थी - ( ९ )




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