पाहुड दोहा | Pahud Doha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९॥ 9 हे मूढजीव / बाहर की ये सब कर्मजाल ह! श्रगठ तुस (शरसे) को त्‌ मत कूट । घर-परिजन को शीघ्र छोडक्छर निर्मल शिवयद्‌ में प्रीति ¢. (अ 96 आकाश (अर्थात्‌ शुद्दात्म0 में जिसका निवास हो जाता है उसच्छा मोह नष्ट हो जाता है, मन मर जाता है, शवासोन्धास छुट जाता है ओर वह केवलज्ञानख्य परिणता है? 9५ सर्प बाहर मे केचुली को तो छोड़ देता है, परन्तु भीतर के विष को नही छोड़ता, उसी प्रकार अज्ञालीजीव द्रव्यलिग धारण करके बाह्यत्याग तो करता हु, परन्तु अन्तर में से विषयभरो्गो की भावना क्ता परडिर नही करता! 9६ जो श्रनि खे हए विषयसुखं की फिर ये अभिलाषा करता है, वह पुनि केशलोचन एव शरीरशोषण के क्लेश को सहन करता हआ भी ससार में ही परि्मण करता है। 9७ ये विषयसुरद तों दो दिन रहनेवाले क्षणिक है फिर तो द स्वे की ही परिषाठी है। इसलिये हे जीव/ भूल कर तू अपने ही कम्धे पर कुल्हाड़ी रत मार। 9८ जैसे दुश्मन के प्रति किये गये उपकार बेकार जाते हैं; वैसे है जीव तू इस शरीर को स्नल कराता हे, तैलमर्दन कयता ह तथा सुमिष्ट शोजन ख्विलाता है, वे सब निरर्थक जालेवाले हँ अर्थात्‌ यह शरीर तेरा कुछ शी उपकार करने वाला नहीं है, अत, तू इसकी ममता छोड़ दे। 9९ अस्थिर, मलिन और निगुणि - ऐसी काया से यदि स्थिर, लिर्पन तथा सारझूत गुणवाली क्रिया क्यों न की जाय ? (अर्थात्‌ यह शरीर विनाशी, मलिल एव गुणरहित है, उसकी ममता छोढकर उसर्गे स्थित अविनाशी, पवित्र एव सारभूत श्ुणवाले आत्मा की भावना करना चाहिए) २०0 विष भला, विषधर भी भला, अग्नि या वनवास का सेवन भी अच्छा, परन्तु जिलधर्ण से विघ्ुख टेसे मिध्याटष्टियो का सहवास अच्छा नही २9. जो जीव मूलगुणों का उन्मूलन करके उत्तरगुर्णों मैं सलग्ल रहता है, वह डाली से चे हए बल्दर की तरह नीचे गिरकर शभग्म होता है। (प्रूलगुण से शष्ठ जीव साधुपने से भ्रष्ट होता है।) २२ यदि तूले आत्मा को नित्य एव केवलज्ञानस्वश्रवी जान लिया तो फिर है वत्स/ शरीर के ऊपर कू अनुराग क्यों करता है? २३ यहीं चौरासी लस्व योलियोँ के सड्य में ऐसा कोई प्रदेश -बाकी महीं रहा कि जहौ जिनवचन क्छ न पाकर इय जीद ने परिश्मण न क्या हो। २8 जिसके वितत मे ज्ञान का विस्फुरण नही ष्ण ह, तधा जो कर्म के हेतु (पुण्य-पाप) को ही करता हैं, वह श्रुनि सकल शास्र को जानता ङा भी सच्चे सुख को गहीं पाता। २१ बोधिसे विवर्जित (रित) हं जीव! तू तत्व को वियरीत मानता ह, क्योकि कमो से निर्मित शावों को तू आत्मा का समझता है। पाहुड़ दोहा हिन्दी अनुवाद १५




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