हिंदी विश्वकोष - बीसवां खंड | Hindi Vishvakosh - Beesva Khand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
766
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रोमकूप--रोपण
१७
रोमकूप ( स'० पु० ) रोमूर्णा कूंप। लोमविवर, शरीरके ] ग्ग सुनि छाये गये भीरं सूच वृष्टि हुई । तव राजानि
वे छिद्र जिनमेंसे रोप' निकलते हुए होते हैं ।
रोमकेशर ( स'०.पुष ) रोमूर्णां केशरमिव । चामिर, चंवर |
रोमगर्त ( स'० पु० ) शैमू्णों गर्त: । रोसकूप, ठोमछिद्र ।
रोमगुच्छ ( सं० पु० ) रोमूरणों शुच्छ' । चामर, च घर ।
रोमशुच्छक ( सं० पु०) चामर, चं वर ।
रोमगुन्त ( सं० पु० ) चमिर, चं वर ।..
रोमरावत् ( सं० लि० ) १ रोमयुक्त, रोएचाला । २ पूछ-
वाङ ] `
शेमतक्षरी ( सं० ख्री० ) सरोमा स्त्री ।
रोमत्यज. ( सं० लि० ) छौमनाशक ।
रोमद्धार ( सं० पु? ) रोमकूप देखो
सेमद्वीप ( सं० पु० ) छमि, किरमिजी ।
रोमन्. ( सं० क्की० ) रौतीति र ( नामन. सीमन. व्य मन
` रोमन्निति । उण. ४।१५० ) इति ममिन् प्रत्ययेन साधुः!
१ एरीरजातां्कर, शोभां । पर्योय--रोम, अङ्गज, स्वग्ज,
, चर्म, तनूरुह । ( राजनि )
` शरोरके रहस्यस्थान अर्थात् गोपनीय स्थानमें जो
रोधं उत्पन्न हो उसे स्पशौ नहीं करना चाहिये । ( कूर्मपु०
९५ म० ) २ जञनपदविशेय । ३ उस देशका घांसी । (पु,
| दभूमि । ( मास्त ६।६।५५ )
रोमन कैथलिक ( अं० पुर ) शता्योका प्राचीन-सम्पर
‹ दाय । इसमें इसाक़ी माता गरियमकी तथा अनेक सन्त
महात्मा उपासना चङती है शौर गिरजेमिं मूत्तियां
भो स्री ज्ञाती हैं ।
रोमन्थ _( स'० पु० ) सींगवाले चौपायोंका निगले हुए
चारेकौ फिरसे भु में छा कर धोरे घीरे,चवाना, पागुर |
रोमपाट ( से० पु० ) ऊनी कपड़ा, दुशाला भादि ।
रोमपाद ( सं० पुर ) अड्डू देशके एक प्राचीन राज्ञा । इनका
उच्छेन वाध्मीकीय रामायणमें ( वाल० सर्ग ६ ) है ।
- कहते हैं; कि यद्द राज्ञां वड़ा अन्यायी और अत्याचारी
था। इनके पापोंसे एक वार भयंकर अनांदृ्टि हुई । राजाने
शाश त्राक्ष्णोको घुल्ला इर उपाय पा । उत्तरम सवने
ऋष्यश्च'ग सुनिको छाकर उनके साथ राजकन्पा शान्ताका
विष्वं कर भेकी राय धी वेश्यार्भोक्षो चेष्टसे ऋष्य
रण, ङश, 5
अपनी कन्या शान्ताक्रां उनसे विवाह कर दिया । `
रोमपुखक ( सरं° पु° ) रोम्णां पुलकः | रोमहपं, सेमाश्च ।
रोमफछा (सं ° ख्री ०) तिन्तिश, डे'ढसी ।
रोमवद्ध ( सं० लि० ) १ जो रोर्योसि चंघो या चुना हो ।
( पु० ) २ चह वख्र जो रोयोंसे चंघा या घुना दो ।
रोमभूमि ( सं° खी°) रोमूणां भूमिरिव 1 त्वक.
मड ।
रोमसूद्ध न ( राव लि० ) रोसयुक्त मस्तकविशिए्ट, जिसके
शिरमें वाछ हों ।
रोमरतासार ( सं° पु) उद्र, पेट ।
रोमरन्घ्न ( -लं० झी० ) रोमकूप, शरीरके वे छिद्र जिनमेंसे
रोद' निकले हुए होते है ।
रोमराज्ञि (स'० ख्री० ) रोमणां राज्ञि । १ रोमावलि
रोयॉकी पंक्ति. २ रोर्थोको चह पंक्ति जो पेटके वी्छो
वीच नासिते ऊपर्कौ ओर जाती है ।
रोभररता ( स खो०.) रोपमरणां-लतेच; रोपावकि, रोम-
राजि।.
रोमलतिका ( स'० ख्री० ) नामिके ऊपर खियोंके
- लोमकी रेखा |. ही ॥ `
रोमलवण (स'० क्लो०) शाम्मर लवण, शाकंभरी नमक |
रोप्रचत् ( स'० लिं० ) रोमन अर्त्यर्थं मतुप. मस्य व
नहघ लोपः । रोमविशिछ्ट, रोयाँवाला ।
रोमर्वष्टी ( स'० सखी° ) कपिकच्छ, केवांच ।
रोमवाहिन् ( स'० लि० ) रोभां काटनेके योग्य तेज॒ धार-
चाला |
रोमविकार ( स'० पु० ) रोम्णां विकार । रोमाश् ।
रोमविक्रिया ( स'० स्त्री ) रोमाश्व, भानन्दसे रोओका
उभर आना |` . ः
रोमविध्वंस (स'० पु०) १ लोमनाशकारी । २ खटमल |
रोमविवर (स'० क्लो० ) रोश्णां विवरं । लोमकूप ।
रोमबेघ (स० पु०) एक प्राचीन ग्रस्थकारं 1
रोमश ( सं०.पु० ) रोमाणि सन्त्यस्प्रेति समन ( लोमादि
पामादिपिच्छादिभ्यः शनेलचः } पा ५।१।१०९ ) . इति शः।
१ मेष, मेडा। २ प्रिरडालु, रताछु!. ३ कुम्मी। ४
शुकर, सूभर । ५ कऋषिविशेष । इस ऋषिका एक एक
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