हिंदी विश्वकोष - बीसवां खंड | Hindi Vishvakosh - Beesva Khand

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hindi  vipoovkosh  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रोमकूप--रोपण १७ रोमकूप ( स'० पु० ) रोमूर्णा कूंप। लोमविवर, शरीरके ] ग्ग सुनि छाये गये भीरं सूच वृष्टि हुई । तव राजानि वे छिद्र जिनमेंसे रोप' निकलते हुए होते हैं । रोमकेशर ( स'०.पुष ) रोमूर्णां केशरमिव । चामिर, चंवर | रोमगर्त ( स'० पु० ) शैमू्णों गर्त: । रोसकूप, ठोमछिद्र । रोमगुच्छ ( सं० पु० ) रोमूरणों शुच्छ' । चामर, च घर । रोमशुच्छक ( सं० पु०) चामर, चं वर । रोमगुन्त ( सं० पु० ) चमिर, चं वर ।.. रोमरावत्‌ ( सं० लि० ) १ रोमयुक्त, रोएचाला । २ पूछ- वाङ ] ` शेमतक्षरी ( सं० ख्री० ) सरोमा स्त्री । रोमत्यज. ( सं० लि० ) छौमनाशक । रोमद्धार ( सं० पु? ) रोमकूप देखो सेमद्वीप ( सं० पु० ) छमि, किरमिजी । रोमन्‌. ( सं० क्की० ) रौतीति र ( नामन. सीमन. व्य मन ` रोमन्निति । उण. ४।१५० ) इति ममिन्‌ प्रत्ययेन साधुः! १ एरीरजातां्कर, शोभां । पर्योय--रोम, अङ्गज, स्वग्‌ज, , चर्म, तनूरुह । ( राजनि ) ` शरोरके रहस्यस्थान अर्थात्‌ गोपनीय स्थानमें जो रोधं उत्पन्न हो उसे स्पशौ नहीं करना चाहिये । ( कूर्मपु० ९५ म० ) २ जञनपदविशेय । ३ उस देशका घांसी । (पु, | दभूमि । ( मास्त ६।६।५५ ) रोमन कैथलिक ( अं० पुर ) शता्योका प्राचीन-सम्पर ‹ दाय । इसमें इसाक़ी माता गरियमकी तथा अनेक सन्त महात्मा उपासना चङती है शौर गिरजेमिं मूत्तियां भो स्री ज्ञाती हैं । रोमन्थ _( स'० पु० ) सींगवाले चौपायोंका निगले हुए चारेकौ फिरसे भु में छा कर धोरे घीरे,चवाना, पागुर | रोमपाट ( से० पु० ) ऊनी कपड़ा, दुशाला भादि । रोमपाद ( सं० पुर ) अड्डू देशके एक प्राचीन राज्ञा । इनका उच्छेन वाध्मीकीय रामायणमें ( वाल० सर्ग ६ ) है । - कहते हैं; कि यद्द राज्ञां वड़ा अन्यायी और अत्याचारी था। इनके पापोंसे एक वार भयंकर अनांदृ्टि हुई । राजाने शाश त्राक्ष्णोको घुल्ला इर उपाय पा । उत्तरम सवने ऋष्यश्च'ग सुनिको छाकर उनके साथ राजकन्पा शान्ताका विष्वं कर भेकी राय धी वेश्यार्भोक्षो चेष्टसे ऋष्य रण, ङश, 5 अपनी कन्या शान्ताक्रां उनसे विवाह कर दिया । ` रोमपुखक ( सरं° पु° ) रोम्णां पुलकः | रोमहपं, सेमाश्च । रोमफछा (सं ° ख्री ०) तिन्तिश, डे'ढसी । रोमवद्ध ( सं० लि० ) १ जो रोर्योसि चंघो या चुना हो । ( पु० ) २ चह वख्र जो रोयोंसे चंघा या घुना दो । रोमभूमि ( सं° खी°) रोमूणां भूमिरिव 1 त्वक. मड । रोमसूद्ध न ( राव लि० ) रोसयुक्त मस्तकविशिए्ट, जिसके शिरमें वाछ हों । रोमरतासार ( सं° पु) उद्र, पेट । रोमरन्घ्न ( -लं० झी० ) रोमकूप, शरीरके वे छिद्र जिनमेंसे रोद' निकले हुए होते है । रोमराज्ञि (स'० ख्री० ) रोमणां राज्ञि । १ रोमावलि रोयॉकी पंक्ति. २ रोर्थोको चह पंक्ति जो पेटके वी्छो वीच नासिते ऊपर्कौ ओर जाती है । रोभररता ( स खो०.) रोपमरणां-लतेच; रोपावकि, रोम- राजि।. रोमलतिका ( स'० ख्री० ) नामिके ऊपर खियोंके - लोमकी रेखा |. ही ॥ ` रोमलवण (स'० क्लो०) शाम्मर लवण, शाकंभरी नमक | रोप्रचत्‌ ( स'० लिं० ) रोमन अर्त्यर्थं मतुप. मस्य व नहघ लोपः । रोमविशिछ्ट, रोयाँवाला । रोमर्वष्टी ( स'० सखी° ) कपिकच्छ, केवांच । रोमवाहिन्‌ ( स'० लि० ) रोभां काटनेके योग्य तेज॒ धार- चाला | रोमविकार ( स'० पु० ) रोम्णां विकार । रोमाश् । रोमविक्रिया ( स'० स्त्री ) रोमाश्व, भानन्दसे रोओका उभर आना |` . ः रोमविध्वंस (स'० पु०) १ लोमनाशकारी । २ खटमल | रोमविवर (स'० क्लो० ) रोश्णां विवरं । लोमकूप । रोमबेघ (स० पु०) एक प्राचीन ग्रस्थकारं 1 रोमश ( सं०.पु० ) रोमाणि सन्त्यस्प्रेति समन ( लोमादि पामादिपिच्छादिभ्यः शनेलचः } पा ५।१।१०९ ) . इति शः। १ मेष, मेडा। २ प्रिरडालु, रताछु!. ३ कुम्मी। ४ शुकर, सूभर । ५ कऋषिविशेष । इस ऋषिका एक एक




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