काव्यालोक | Kavyalok

Kavyalok by हरि प्रसाद - Hari Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ही छोटे लिखे जाने के कारण श्रक्षर-संख्या मी समान नहीं है, प्रायः एक पंक्ति में 30 से लेकर 40 तक श्रक्षर लिखे गये हैं । ग्रन्थ का प्रारम्भ “श्री गणेशाय नमः से हुभ्रा है श्रौर इससे पूवे “श्रोम्‌ फा प्रतीकात्मक चिल्ल दिया गया है । इस पाण्डुलिपि में मिलित शब्दावली का प्रयोग है, जिसमे समी शब्द एक दूसरे से मिलाकर लिखे गये हैं । पद, वाक्य, गद्य और पद्य को श्रलग करके नहीं लिखा गया । कहीं-कहीं पंक्तियों के मध्य में विभाग-दर्शक चिज्न « ' ॥ ' लगा दिया गया हैं । वाक्य के बीच में एक ही श्रक्षर के वर्ण कहीं दूर-दूर लिख दिये गये हैं श्रौर कहीं पर दो श्रक्षरों के वर्ण मिला दिये गये हैं । मिलित शब्दावली के प्रयोग के कारण गद्य श्रथवा पद्य की पंक्ति पूर्ण हो जाने पर भी प्रागे कौ पक्ति के प्रथम शब्द के साथ उसे मिला हुश्रा मानकर सन्धि के नियमानुसार उसमे विसगं लोप अथवा श्रस्य परिवर्तन कर दिये गये हैं । पतित पाठ भ्र्थात्‌ कहीं कोई शब्द, शब्दांश या वाक्यांश लिखना रह गया है, तो वहाँ वर्णों के मध्य (पत्तित्त पाठ दर्शक चिह्न) “हंस पग” (मोर पग या काक पद) ” 2 ” चिह्न लगाकर हाशिये में (सूल-पाठ के चारों श्रोर के रिक्त स्थानम) पक्ति की संख्या लिखकर दृटा भ्रंश लिखा है ग्रौर वहाँ पतित पाठ विभाग दर्शक चिह्लू--“ >< ” लगा दिया गया है । सूल-पाठ से सम्बन्धित महत्वपूरे संकेत करने के लिए शब्द के ऊपर “=” चिह्न लगाया गया है और हाशिये मे पक्ति की संख्या लिखकर उक्त भ्रंश लिखने के पश्चात्‌ “=” चिह्न लगाया गया है श्रथवा पंक्ति के ऊपर ही शब्द लिख दिये गये हैं । भुल से कोई श्रतिरिक्त शब्द लिखे जाने पर उसे “हरताल” (पीले रंग) से मिटा दिया गया है । कुछ स्थलों पर पंक्ति के प्रारम्मिक या श्रत्तिम शब्दों पर अथवा पूरी पंक्ति पर लाल रंग किया गया है । सम्मवतः महत्त्वपूर्णं स्थल पर ध्यान श्राकर्षित करने के लिये श्रथवा प्रति की सुन्दरता बनाये रखने कै लिये इसका प्रयोग किया गया है । । लिलावट सामान्य रूप से सुपादय है । मध्य के कुछ पृष्ठो में, जहाँ बहुत छोटे-छोटे श्रक्षर लिखे गये हैं, पढ़ने में कुछ प्रयत्न श्रवश्य करना पड़ता है । लिपि सुपाठ्य होने पर भी कई स्थलों पर भ्रम उत्पन्न होता है। जैसे-- “रा” और है ई की मात्रा स्पष्ट नहीं होने पर दोनों मे रम होता है! “य झौर प मे तथा ब्द श्नौर “ष्द मे मौ स्पष्टता नहीं है । “त्स” में “स” का




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