एक आदर्श | Ek Adarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पवित्रता के बढते चरण
प्रेरक प्रसग प्रेरक महाप्रयाण
पृतीतात्मा साध्वी लिछसांजी की प्रेरक आत्मकथा
>सुति धर्मचद पीयूषः
मानव जीवन गार्यक्षेत्र, उत्तम कुल और पॉच इन्द्रियों के साथ चितन-मनन में सक्षम
मस्तिष्क की प्राप्ति पूर्व जन्मों के शुभ कर्मों के योग से होती है। अग्रोक्त अनुकूलताओं
के बावजूद वीतराग प्रभु की वाणी का श्रवण, उस पर प्रगाढ़ श्रद्धा और तदनुरूप आचरण
करने की ललक किसी-किंसी परम पवित्नात्मा के मन में ही परम सौभाग्य से पैदा होती
है। ऐसी ही परम निर्मलात्मा- साध्वी श्री लिछमा जी गगाशहर के पवित्रता के बढ़ते
चरण की है- यह सच्ची कहानी, जिनके मन में जिनवाणी का पीयूबपान करते-करते
भरी-पूरी जवानी और सर्वानुकूलतार्ओं से परिपूर्ण जिन्दगानी में वैराग्य भावना उत्पन्न
हुई। साधुत्व स्वीकारने के सकल्प का सुरतरु फलवान बना, उसके अविनाशी परितृप्ति
प्रदायक मौठे-मधुर फर्लों का आस्वाद न केवल लिछमा ने स्वयं चखा, अपितु अपने प्रिय
पति फतहचदजी को परितृप्ति में साथ कर लिया। सच में वही तो स्वजन- सगा है, जो
मिली हुई अलौकिक निधि में अपने जीवन साथी को भागीदार बना ले।
न्म, विवाह मौर सतानोत्यत्ति . साघ्वौ श्री लिछमाजौ का जन्म विक्रम सवत्
1 कृष्णा अष्टमी को गगाशहर (बीकानेर) मे हुभा। पिता थे- भेरूदानजी
ध माता का नाम था-छगनीदेवौ । माता-पिता दोनों सरलात्मा धर्मात्मा थे एक
+ 1 का लाड-प्यार मे पालन-पोषण हुभा। माता-पिता व्यवसाय के कारण
शी में रहते थे। अत बचपन कोलकाता के शहरी वातावरण में
+ द पूर्वक बौता जहो धार्मिक परिवेश या सत-सत्तियों का समागम न के
९ रहा! समय-समय पर जन्म भूमि गगाशहर आने पर ही सत- दर्शन का लाभ
न
७)
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