भारत का वायु शास्त्र | Bharat Ka Vayu Shastar

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Bharat Ka Vayu Shastar by मीठालाल अटलदास व्यास - Meethalal Ataldas Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ विधि ओर वषौ होने का उपाथ-ये तीनों विषय विस्तार से व- णित ह। चषा जानने की विधि मे गदि महर्षियों से ले के भडली पयन्त की कही हुदै अनेक प्रकार की यक्तियें एकज की गई हे जनके द्धाय विद्धान्‌ तो क्या साधारण से साधारणम- खष्य को भी सुगमता पवक बहुत समय पहिले ही से वर्षा का ज्ञान हों के सुमिक्ष दुभिक्ष जानने में अचदय सहायता मिलेगी जिस से सचेत हो के दुर्भिक्ष से वचने का उपाय पहिले से कर सकंगे। ऐसी पुस्तक आज तक किसी भाषा में प्रकाशित नहीं इुइ ह। हस्ता समूद्रादादाय करेण जलमीप्सितम्‌ । दद्याद्‌ घनाय तदद्चाद्रातेन भस्तिघनः १ स्थाने स्थाने पृथिव्याञ्च काटे काले यथाचित्तम । तस्सर्वं परिज्ञानार्यं निमित्तं मुख्यकारणम्‌ ॥ प्राचीन चघ्ष्टि विद्या में लिखा है कि सये अपनी किरणों डरा समुद्रादि में से जल को ऊपर खींच के बादलों को देता दे अथात्‌ सूय की गर्मी से जल के परमाणु सूक्ष्म दो के ऊंचे जाते है और साथ चायु के परमाणु मिल के वादल बन जात हू फिर वे वादल वाय की प्रेरणा से जिस २ देश तथा जिसर्‌ काल मे जितना २ जरु व्षना हौ उतना २ चहां २ चर्षते हैं । परन्तु किस समय का खींचा हुआ जल पीछा किस समय कितने दिन तक कितना वर्वेगा इत्यादि वातो को जानने के लिये निमित्ते काज्ञान दी मुख्य है। सृष्टि के जिन २ पदार्थो म वर्ष सम्वन्धि ज्ञान होता हैं. उन्हे निमित्त कहते है, औओंग्.थे चार भागा मे भोम अन्तरिक्ष दिव्य और मिश्र के भेद से घाट गये ट्। (१७) चपों ज्ञानने के निमित्त-- देश, मनुष्य, पद्यु, पक्षी, कीट, पतंग आदि द्रष्य वष्र का मान हो उस्र को भौम निमित्त कहते है। चायु, वाद, चिजखी. गाज, वर्णा, मन्ध द्षटष् मोरे प्रति सूर्य, तारा कुण्डल, आंधी. गन्धं रमन, ५2 श्रदर ?




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