कल्पना साहित्यिक तथा सांस्कृतिक द्वैमासिक पत्रिका | Kalpna Sahityik Tatha Sanskritik Dwaimasik Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ च कर्टपता भ्रप्रल; १६५१ न चन्य भाषाओं के उत्तमोत्तम न्थ के चरच्छे श्रवुवाद, सूयान्तर अथवा “संग्रह” ही तैयार किये जा सकते है । रेडियो आर हिन्दी समाचार-पत्रों का तथा केन्द्रीय अरर प्रान्तीय तरकार के दिभिक विभाय करा नित्यप्रति का कराम भी तमी ठीक चल सकेगा जब अंग्रेजी के सहारे हिन्दी अपना शब्द-संडार सम्पन्न बना ले | यह काम जनता का नहीं है। जनता को जिन शब्दं की ्राव्क्षता होती है, उन्हें कह अविलम्ब वना लेती हे । एलतः जनता के बनाये हुए सैकड़ों विदेशी शब्द अनूदित, रूपन्तरित अथवा विकृत हो कर हिन्दी में समा- कप हो चुके हैं । न्त वॉद्धिक जीवन के लिए अपेज्षित झव्दावली जनता नहीं वनाएगी- उसे झावश्यकता ही नहीं है । हइत चब्दाक्ली का निर्मा विद्वानों को करना होगा | इस दिशा में कुछ काम पहले हु है, कुछ घमी हाल में, डुछ अब हो रहा है । किन्तु जैसा तर्वोग-पूर्ण चौर प्रामाणिक ध्रंसेनी-हिन्दी कोष अपेक्तित है, वैषान तो वना ही है, रौर त उसके बनने की कोई आशा ही दिखाई देती है! पुराने अ्रेनी-हिन्दी ( या-उर्दू, या -हिन्दुस्तानी ) कोषो मेँ फलन, गिलकरिस्ट, शेक्सपियर श्रि के नाम लिये जा सकते हैं; नयों में रामवारायण लाल, मार्यव) आक्सृफोडं अदि के ! दुखत्म्पत्तिराय भरडारी का अनेक मागो मे अरकाशित भवेजी-हिन्दी कोष तथा मौलाना चच्दुल हक करा अंग्रेजी-उरदू कोष भी उल्लेसनीय हैं ! डा. रघुवीर के शासन - तथा विज्ञान -्म्बन्धी कोष जोर राहुल सांकृत्यायन, विद्यानिवासत सिश्र तथा प्रमाकर माचवे का शाप्तन-शब्दकोष अभी चये-नये प्रकाशित हुए हैं । किन्ठ ये तमी अधूरे, एकोगी, ब्ुटि-पूर्ण अथवा युराने हैं । हाँ. अपेक्षित कोप की तैयारी में ये सहायक अवश्य हो सकते हैं । डा. रघुवीर ओर जा, सिद्धेश्वर वर्मा एक “आंगल-संस्कत-महाकोष” तैयार कर रहे हैं। इस कोष के सर्वोग-पूर्थ होने की आशा है श्रौर यह हिन्दी के लिए बहुत दूर तक सहायक अर सार्य-दर्शक का काम कर सकेगा | 'फिर मी अंप्रजी-हिन्दी कोष कौ अपेत्ता रहेगी ही । प्रमाणिक तथा सर्वाय-पूर्ण कोष प्रस्तुत करने का काम एक व्यक्ति के कश का नहीं: न एक व्यक्ति ऐसा कोष तेणर कर सकता है, न प्रकाशित करा सकता है । कोई संस्था, अयवा ग्रान्तीय तरकार - थवा केन्द्रीय सरकार -इस काम को हाथ में ले और सब विशेषज्ञों का सहयोग आप्त करे, तभी यह योजना सफल हो तकती है ! किन्ठ हमें यहाँ यह नहीं बताना है कि हिन्दी की इस “तात्कालिक आवश्यकता” की पूर्ति कौन करे और किस प्रकार ऊरे । यह आवश्यकता 'तात्कालिकर है, इतना हा हमें निदि करना हे । गले अड्ड में हम हिन्दी की अन्य तात्कालिकः त्रावर्यक्ता्ो के विषय में अपने विचार म्रत्त॒त करेंगे 1




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