महा मानव के विविध रूप | Maha Manav Ke Vividh Rup
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
73
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थापुका वह घमत्कार ! ११
धामकौ प्रार्थना-समार्भे असा ओर् प्रेमके उपदेशकी गंगा
बहति ये।
इन सब प्रयलोका दो ही दिनमें आद्चर्येजनक परिणाम
जाया । १५ अगस्त, १९४७ का दिन कलकत्तेके खोमोके किए
द्रतिद्ा मौर प्रेमका सन्देश केकर आया । प्रातःकाले ही
हिन्दू और मुसलमान प्रेमसे गले मिलने लगे और धर्में थ
कनेमके भेदको भूल कर साथ साय मंदिरों और मसनिदोंमें
जाने लगे ।
लड़ानेवाले हिन्दू नेताओंकी तो सारी बाजी ही पलट
गई । वे परेशान थे कि गांधीने यह कसा जादू कर दिया !
एक नेता कहता: “इस गांधीने तो मुसछमानोंका
सफाया करनेकें हमारे सारे भनसूवों पर पानी फेर दिया 1”
दूसरा कहता: “शह्रमें जहां देषो वहां हिन्द मौर
मुसलमान प्रेससे हंस-वोल रहे हैं । जैसे दोनोंमें कमी कोई
दुश्मनी थी हौ नहीं!“
तीसरा सुनाता : “ अरे, हिन्दु ओर मुसलमान दोनों हाये
हाथ मिलाकर मंदिरों और मसजिदोंमें जाते हूं और हिन्दू-
मुस्लिम एक्ताकी प्रार्थना करते है । कोई पुजारी, कोई
मोकवी मा मुल्ठा उन्हें रोकता नही; उलटे हंसते हंसते दोनों
कौमवार्खोकां स्वागत करता है 1“
चौथे नेताने शांत स्वरमें पूछा: ” लेकिन क्या तुम्हें
ऐसा नहीं लगता कि इस सबके पौे ईश्वरफे दुतं महात्मा
गाँधीकी तपस्याका ही प्रताप है?”
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