महा मानव के विविध रूप | Maha Manav Ke Vividh Rup

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Maha Manav Ke Vividh Rup by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थापुका वह घमत्कार ! ११ धामकौ प्रार्थना-समार्भे असा ओर्‌ प्रेमके उपदेशकी गंगा बहति ये। इन सब प्रयलोका दो ही दिनमें आद्चर्येजनक परिणाम जाया । १५ अगस्त, १९४७ का दिन कलकत्तेके खोमोके किए द्रतिद्ा मौर प्रेमका सन्देश केकर आया । प्रातःकाले ही हिन्दू और मुसलमान प्रेमसे गले मिलने लगे और धर्में थ कनेमके भेदको भूल कर साथ साय मंदिरों और मसनिदोंमें जाने लगे । लड़ानेवाले हिन्दू नेताओंकी तो सारी बाजी ही पलट गई । वे परेशान थे कि गांधीने यह कसा जादू कर दिया ! एक नेता कहता: “इस गांधीने तो मुसछमानोंका सफाया करनेकें हमारे सारे भनसूवों पर पानी फेर दिया 1” दूसरा कहता: “शह्रमें जहां देषो वहां हिन्द मौर मुसलमान प्रेससे हंस-वोल रहे हैं । जैसे दोनोंमें कमी कोई दुश्मनी थी हौ नहीं!“ तीसरा सुनाता : “ अरे, हिन्दु ओर मुसलमान दोनों हाये हाथ मिलाकर मंदिरों और मसजिदोंमें जाते हूं और हिन्दू- मुस्लिम एक्ताकी प्रार्थना करते है । कोई पुजारी, कोई मोकवी मा मुल्ठा उन्हें रोकता नही; उलटे हंसते हंसते दोनों कौमवार्खोकां स्वागत करता है 1“ चौथे नेताने शांत स्वरमें पूछा: ” लेकिन क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इस सबके पौे ईश्वरफे दुतं महात्मा गाँधीकी तपस्याका ही प्रताप है?”




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