भाई क़े पत्र | 1123 Bhai Ke Ptra; 1931
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मस्तावना $
सीता, र्परििणी, सावित्री, सती, दमयन्ती, मीरा इत्यादि को भादशं
बना । तभौ काम चरेगा ! साहस, धेयं क्षमा, वीरता, गामी, जान,
बरप्राक्रम इत्यादि पुरुष के सद्गुण ह ओर दया, करुणा, सेह, मत्रा,
शी, रजा, मधुरता, विनय, सरख्ता, संतोष, सेवा इत्यादि खी के सदुगुण
हैं । दोनो अपने-अपने गुर्णों को अपनाये और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति
रखकर, एक-दूसरे में मिलकर, ऊँचा उठे । बस यही इसका सीधा उपाय है।
परन्तु अभी तक बड़े-बड़े पढ़े-लिखे लोग इसी पर बहस करते जा
रहे है कि खी सम्भवतः छोटे दुर्ज की और प्रकृति द्वारा ही पुरुष के
अधीन रहने के लिए बनाई गई है। इसमे पुराने खयाल ऊँ रगो का
बहुमत है--पुसने ज़याल के रोगो से मेरा मतछब सिफ बड़े-दूढ़ों से नहीं
है वर बहुत से नचयुवकों से भी है, जो समाज के फायदे, जाति के
विकास के माम पर सियो को पुरुषों से छोटा समझते है--भ्रद्यपि इसमें
कट्टर पुराने धर्सवादियों की संख्या ज्यादा है। इसका कारण यह है कि
पुरुष-हदय स्वभावतः अधिकार-प्रिय, स्वार्थी, प्रूत्तिमय और सन्देहशीक
है, नहीं तो वेद्, महाभारत ^ से छेकर संसार के प्रत्येक महापुरुष ने खी
का दुर्जा पुरुष से श्रेष्ठ बताया है और उसे विश्वास एवं पूजा के योग्य *
करार दिया है ।
१, “है ख्री ! तू घर की मालिक बनकर जा । वहाँ जितने पुरुष
हों सब के साथ रानी की तरह वात-चीत कर ।”” भवेद्
“कोई कहता है माँ बड़ी है को क्ता है वाप वडा है | प्र
असल मेँ रमो बडी है, क्योकि वह ॒संतान-पाटन जैसा कठिन कार्यं करती
है और फिर भी प्रसन्न दिखाई देती है |” --महामारत
२. “ख्री प्रकृति की बेटी है | उसकी ओर कोप-दृष्टि से मत देख |
उसका हृदय कोमल होता है ¡ उसपर विश्वास कर | --महाभारतं
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