हिन्दू राष्ट्र का नव निर्माण | hindu-rashtra Ka Nava Nirman

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hindu-rashtra Ka Nava Nirman by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दू-राष्ट्र का तव निभं १३ तो हमारा अति शीघ्र नाश हो ` जायगा । क्योकि ्रवे-तक भिस 'हिन्दु संस्कृति ने हमें जीवित रदखा है-बह्‌ इतनी लीं, दोष- पूर्ण और अव्यवहारिक हो गई है कि व वह ठहर नहीं सकती । प्रत्येक संस्कृति के लिये युग आते हैं । युग धर्म के 'अनुसार महा- जादियों की संस्कतियां बदलती ` रहती है ! जो जाति अपनी संस्कृति को युगधर्म के अनुकूल नहीं बना सकती वह्द देर तक. जीवित नदीं रह सकती । हिन्दु जाति ने 'झपनी संस्कृतियों को समय २ पर बदला है, यद्यपि संसार की सभी जातियों के इति- हास में ऐसे ही उदाहरण मिलते हैं--परन्तु मूल संस्कृति स्थित रखते हुए केवल आार्थिक परिवतन भारत ही में हुए हैं । आज भारत की स्वामिनी होने योग्य कोई जाति भारत में नहीं है । मुसलमान, इंसाई और अन्य हिन्दु इतर जातियों में से कोई भी जाति भारत की मालिक बनने की अधिकारिणी नहीं । ये समी जातियां यद्यपि भारतीय है, परन्तु 'भारतीयता से दूर . हैं । प्रस्येक सुसलमान अपने को अपने पड़ौसी हिन्दु की झपेक्षा छर फे एक अपरिचित मुसलमान को अधिक सगा सममत दै | यही दशा ईसाइयों ओर अन्य जातियों की है । हिन्दु भी भारत के मूल निवासी नहीं, पर वे उन अय के वंशज हैं जिन्होंने भारत की जातीयता, गौरव और उसकी लोकोत्तर संस्कृति कायम की है । इसके सिवा हिन्दुओं का भारत भूल स्थान है ¦ भारत. की अज सव से प्राचीन जाति हिन्डु है--ओओर मेरा कहना य. है कि वही वास्तव मे मारतःकी स्वामिनी है । अन्य जातियां उसकी सहयोगिनी होने के योग्य हैं ।




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