सावयधम्मदोहा | Savayadhammadoha

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Savayadhammadoha  by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| सावयघम्मदोद्दा तीन नामों का सम्बन्ध बतलाया गया है-मूलमन्यकार योगीन्दंदेव, पैजिका- कार लकषमीचन्द्र और इतिफार प्रमाचन्द्र सुनि । इसी कथन के साथ साथ प. प्रति के अन्तिम वाक्य पर विचार कीजिये । उस वाक्य में कहा गया है कि संबत्‌ १५-५५, कार्तिक सुदि १५, सोमवार के विद्यानन्दे के पट पर अधि- छ्ित महिभूषण के शिष्य पं. लक्ष्मण के पठनार्थ देइकश्रावकाचार लिखा गया } हमारा अनुमान ह कि रद्मण लदेमौचन्दर का दीश्चित होने से पूर्व का नाम हे भौर उन्दी की शिष्यावत्था में उनके पठना्थ वह प्रति तैयार हुई थी | इससे निश्चय हेगया कि लक्ष्मीचन्द्रजी इन दोहे के मूलकता नही हैं । उनकी बनाई हुई ' पंजेका * कोनसी दे इसपर आगे चलकर विचार किया जायगा । पर. प्रति में जो. * छक्ष्मचनदविराचिंते * बाय गया उसी से पंछे के लिपिकारों ने तथा श्रुतसागरजी ने धोखा खाया । यथार्थ में वहां * शी ल्षमीचन्द्र्िखिते * या भ्रीलपूमीचन्द्राथेलिखिते * पाठ होना चाहिये था । ल्मीचन्द्रकृत भन्य कोई संस्कृत, प्राकृत व अपप्रेश प्रन्थ इमरे देखने सुनने में नही भाया । प्रन्थकतौ कौ खोज में अब हमारी दृष्टि योगीन्द्रदेव पर जातौ ३ जे। भ. और भ. प्रति में इस प्रन्थ के करता कहे गये हैं । योर्गान्द्रदेव के अगतक चार प्रन्थ प्रकाशित हो चुके दू-परमात्मप्रझ्ाश, योगसार, असताशीति भौर निजात्माष्टकम्‌ | इनमे से प्रथम दो श्रस्तुत प्न्थ के समान दी अप- भ्र देहें। में रचे गये हैं । तीसरा ध्रन्थ संस्कृत व चौथा प्रात में हैं। भीयुक्त ठपाध्य ने एक अंग्रेजी लेख में प्रस्तुत ग्रन्थ व परमात्मप्रकाश का मिलन कर यदद मत प्रकट किया दे कि इन दोनों की रचना में एक दो जगह साधारण स्यदो छो छोई स्मरणीय खादय नहीं दे। इमने प्रन्थकार के सभी प्रन्यों को इसी देतु ञे देखा । तीन प्रन्यो मे सेतो काई साइइ्य नदी मिछा दन्तु परमात्मप्रकाश में निश्न लिखित उक्तियों पर दृष्टि अटकी । मिलान की सुविधा के छिये हम प्रस्तुत ग्रन्थ के अवतरणों के साथ साथ इन्हें यहां लिशते हं ~




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