आकाश के तारे धरती के फूल | Aakash Ke Taare Dharati Ke Phool

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Aakash Ke Taare Dharati Ke Phool by श्री कन्हैयालाल मिश्र - Shri Kanhaiya Lal Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोपटी १८ हते धसतीकी क्वाती पर इस तरह छितर गं कि जसे इट-रोडोके अतिरिक्त वे कमी और कुछ थी दी नही । राव आया, इधर-उधर घूमा । इजीनियर आये, इधर-उधर घूमे, पर अट्टालिका जो औन्वेमुंह गिरी-सो-गिरी ! वह अब मछवेका टेर थी, मलवेका टेर ही रही । भोपडी फिर ज्यो-की-त्यों खडी थी । उसने अट्टालिकाका यह रूप देखा, तो वहं सिहर उरी, पर उसका कण्ठ स्वरहीन ही रहा 1




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